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________________ ३८ आवश्यकनियुक्तिः तस्मात्परिणामजीवमूर्तसप्रदेशैकक्षेत्रक्रियावन्नित्यकारणकर्तृसर्वगतिस्वरूपेण द्रव्यलोकं जानीहि, इतरैश्चापरिणामादिभिः प्रदेशैः द्रव्यलोकं जानीहीति सम्बन्धः ॥४४॥ क्षेत्रलोकस्वरूपं विवृण्वन्नाहआयासं सपदेसं उड्वमहो' तिरियलोगं च । खेत्तलोगं वियाणाहि अणंतजिणदेसिदं ।।४५।। आकाशं सप्रदेशं ऊर्ध्वमधः तिर्यग्लोकं च । क्षेत्रलोकं विजानीहि अनंतजिनदर्शितं ॥४५॥ आकाशं, सप्रदेशं प्रदेशैः सह । ऊर्ध्वलोकं मध्यलोकमधोलोकं च । एतत्सर्वं क्षेत्रलोकमनन्तजिनदृष्टं विजानीहीति ॥४५॥ चिह्नलोकमाहजं दिटुं संठाणं दव्वाणं गुणाण पज्जयाणं च । चिण्हलोगं वियाणाहि अणंतजिणदेसिदं ।।४६।। ... इसलिए परिणाम, जीव, मूर्त, सप्रदेश, एक क्षेत्र, क्रियावान्, नित्य, कारण, कर्तृत्व और सर्वगत-इन स्वरूप से द्रव्यलोक को जानो । इससे इतर अर्थात् अपरिणाम, अजीव, अमूर्त आदि प्रदेशों से द्रव्यलोक को जानो, ऐसा सम्बन्ध कर लेना चाहिए ॥४४॥ ४. क्षेत्रलोक का स्वरूप कहते हैं गाथार्थ-आकाश सप्रदेशी है । ऊर्ध्व, अध: और मध्य-ये तीन लोक हैं । अनंत जिनेन्द्र द्वारा देखा गया यह सब क्षेत्रलोक है-ऐसा जानो ॥४५॥ आचारवृत्ति-आकाश अनन्त प्रदेशी है किन्तु लोकाकाश में असंख्यात प्रदेश हैं । उसमें ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक और अधोलोक ऐसे तीन भेद हैं । अनन्तशाश्वत जिनेन्द्रदेव के द्वारा देखा गया यह सब क्षेत्रलोक है-ऐसा तुम समझो ॥४५॥ ५. चिह्नलोक को कहते हैं गाथार्थ-द्रव्य, गुण और पर्यायों का जो आकार (संस्थान) देखा जाता है, अनन्त जिन (जिनेन्द्र भगवान्) द्वारा दृष्ट वह चिह्न लोक है-ऐसा जानो ॥४६॥ १. अ. ब. आगास । २. अ. ब. मह । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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