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________________ आवश्यकनियुक्तिः भावलोकमाहतिव्वो रागो य दोसो य उदिण्णा जस्स जंतुणो । भावलोगं वियाणाहि अणंतजिणदेसिदं ।। ४९।। तीवो रागश्च द्वेषश्च उदीर्णा यस्य जंतोः । भावलोकं विजानीहि अनंतजिनदर्शितं ॥४९॥ यस्य जन्तोस्तीव्रौ प्रीतिविप्रीति उदीर्णो उदयमागतो तं भावलोकं विजानीहीति ॥४९॥ पर्यायलोकमाहदव्वगुणोत्तपज्जय भवाणुभावो य भावपरिणामो । जाण चउविहमेवं पज्जयलोगं समासेण ।।५।। द्रव्यगुणक्षेत्रपर्याया: भावानुभावश्च भावपरिणामः । जानीहि चतुर्विधमेवं पर्यायलोकं समासेन ॥५०॥ द्रव्याणां गुणा ज्ञानदर्शनसुखवीर्यकर्तृत्वभोक्तृत्वकृष्णनीलशुक्लरक्तपीतगतिकारकत्वस्थितिकारकत्वावगाहनागुरुलघुवर्तमानादयः । क्षेत्रपर्यायाः सप्तनरक ८. भावलोक को कहते हैं गाथार्थ-तीव्र राग और द्वेष जिस जीव के उदय में आ गये हैं-उसे तुम अनन्तजिन के द्वारा कथित भावलोक जानो ॥४९॥ . आचारवृत्ति-जिस जीव के तीव्र राग-द्वेष उदय को प्राप्त हुए हैं, अर्थात् किसी में प्रीति, किसी में अप्रीति चल रही है उन उदयागत भावों को ही भावलोक कहते हैं ॥४९॥ __९. पर्यायलोक को कहते हैं .. गाथार्थ-द्रव्यगुण, क्षेत्रपर्याय, भवानुभाव और भाव परिणाम-संक्षेप से यह चार प्रकार का पर्यायलोक जानो ॥५०॥ आचारवृत्ति-द्रव्यों के गुण-ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, कर्तृत्व और भोक्तृत्व-ये जीव के गुण हैं । कृष्ण, नील, शुक्ल, रक्त और पीत-ये पुद्गल के गुण हैं । गतिकारकत्व धर्म द्रव्य का गुण है । स्थितिकारकत्व यह अधर्म द्रव्य का गुण है । अवगाहनत्व आकाश द्रव्य का गुण है । अगुरुलघु गुण सब द्रव्यों का गुण है और वर्तमान आदि काल का गुण है । क्षेत्रपर्याय-सप्तम नरक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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