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________________ का नियन्त्रक नहीं है । प्रत्येक सत् का अपने ही गुण और पर्याय पर अधिकार है । I सभी द्रव्य स्वभाव में रहते हुए स्वद्रव्य का ही कार्य करते हैं; कोई द्रव्य अन्य द्रव्य का कार्य नहीं करता । ५८ जो 'गुण जिस द्रव्य में होते हैं वे उसी द्रव्य में रहते हैं, अन्यत्र संक्रमण नहीं करते । गुण- पर्याय अपने ही द्रव्य में रहते है ।" सत् स्वलक्षण वाला स्वसहाय एवं निर्विकल्प होता है । ६० सभी प्रकार के संकर व शून्य दोषों से रहित संपूर्णवस्तु सद्भूत व्यवहारनय से अणु की तरह अनन्यशरण है, ऐसा ज्ञान होता है । द्रव्यों की संख्या छह है। उन छहों द्रव्यों में से कोई भी द्रव्य अपने स्वभाव का परित्याग नहीं करता। यद्यपि वे परस्पर में मिले हुए रहते हैं। एक दूसरे में प्रवेश भी करते हैं तथा एक ही क्षेत्र में रहते हैं । ६२ प्रत्येक द्रव्य स्वतन्त्र है । दो द्रव्य मिलाकर एक पर्याय नहीं बनाते और न दो द्रव्यों की एक पर्याय बनती है । द्रव्य अनेक हैं और अनेक ही रहते हैं । ६३ द्रव्य स्वयं ही कर्ता, कर्म, और क्रिया- तीनों है । द्रव्य पर्यायमय बनकर परिणमन करता है। जो परिणमन हुआ वही द्रव्य का कर्म है और परिणति ही क्रिया है, अर्थात् द्रव्य ही कर्ता है, क्रिया तथा कर्म का स्वामी भी वही है । ६५ कर्ता, क्रिया, और कर्म, भिन्न प्रतीत अवश्य होते हैं, परन्तु इनकी सत्ता भिन्न नहीं है। स्वयं की पर्याय का स्वामी स्वयं है । ६६‍ ५८. सर्वभाव निज भाव निहारे पर कारज को कोयन धारे। - द्रव्यप्रकाश १०९. ५९. जो जम्हि गुणे दव्वे.... परिणामए दव्वं । 1 अमृतचंद्राचार्य कृत टीका । ६०. तत्त्वं सल्लक्षणिकं - स्वसहायं निर्विकल्पं -च.प.ध.पू. ८.५२८ ६१. अस्तमितसर्वसंकरदोषं क्षतसर्वशून्यदोषं वा । अणुरिव वस्तु समस्तं ज्ञानं भवतीत्यनन्यशरणम् । स.मा. १०३. विस्तार के लिये इसी की वहीं प.ध.पू. ५२८ ६२. अवरोप्परं विमिस्स.... . परसहावे गच्छंति - न.च.वृ. ७ ६३. “नोभौ परिणामतः.....मनेकमेव सदा ।” Jain Education International ६४. वही ५१ ६५. वही ५२ ६६. अप्पा अप्पु जिपरू जि, परु अप्पा परु जिण होई । परुणि कयाइ वि अप्पू णियमें पमणेहि जोई। - परमात्म प्रकाश १.६७ ५३ अध्यात्म अमृत कलश ५३. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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