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________________ प्रकार तराजु के एक पलड़े का ऊपर जाना और दूसरे का नीचे आना एक साथ होता है, उसी प्रकार उत्पाद और व्यय भी एक काल में ही होते हैं । ५३ इस प्रकार 'द्रव्य एक ही क्षण में उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से युक्त होता है । ५४ पूर्व पर्याय के विनाश का क्षण ही उत्तरपर्याय के उत्पाद का क्षण है । अतः उत्पाद और विनाश समकालीन हैं। इस अपेक्षा से इनमें कालभेद हैं भी सही क्योंकि एक पर्याय की आदिकालीन सीमा और अंतिमकालीन सीमा भिन्नभिन्न हैं। जिस समय उत्पाद -विनाश रूप पर्याय परिवर्तन घटित होता है उस समय भी वस्तु सामान्यरूप से विद्यमान रहती है । जैसे अंगुली एक वस्तु है, वह जब सीधी (सरल) है तब टेढ़ी नहीं है और जब टेढ़ी है तब सीधी नहीं । अंगुली में टेढ़ापन पर्याय के उत्पाद और सरलता रूप पर्याय के विनाश का समय अलग-अलग नहीं है; यह हुई एक वस्तु रूप अंगुली में उत्पादविनाश रूप दो पर्यायों के एक साथ होने की व्याख्या । अब एक पर्याय वक्रता को लें तो उत्पाद - विनाश का कालभेद स्पष्ट हो जायेगा । अंगुली का टेढ़ापन मिटा और वह सरल बनी; यह अंगुली की सरलता का उत्पादकाल, अमुक समय तक सरल रहकर वक्र बनी; यह सरलता का विनाशकाल और सरलता से वक्रता तक की यात्रा के मध्य जो समय व्यतीत हुआ वह सरलता का स्थितिकाल बना । ५५ इसे और स्पष्ट करने के लिए सम्मति तर्क के सम्पादकीय में मकान का उदाहरण भी दिया गया है। जब मकान निर्माण की प्रक्रिया से गुजरता है, तब वह संपूर्ण मकान की अपेक्षा तो उत्पद्यमान (अधूरा) है, परन्तु उसके जितने भाग परिपूर्ण हो गये, उनकी अपेक्षा से उसे 'बन गया' कहेंगे और जो बनने बाकी हैं, उनकी अपेक्षा उसे कहेंगे कि 'बनेगा ।' ५६ उत्पन्न होते द्रव्य को कहेंगे 'हो गया', हो रहे को कहेंगे 'नष्ट हो गया' इस प्रकार कहकर द्रव्य को त्रिकालविषयी ५३. नाशोत्पादौ ...... तुलान्तयोः । उद्धृत - आ.मी. २२० पृ. मे ५४. सभवेदं खलु दव्वंसण्णिदट्ठेहिं - प्र. सा. १०२. ५५. सन्मतितर्क में संपादक युगल का विवेचन ३.३५.३७.२९५,९६. ५६. वही ३ स.त. ३.३७ Jain Education International ५१ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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