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बौद्ध 'तत्त्व' को सर्वथा अवाच्य बताते हैं, परन्तु अवाच्य कहने वाला अवाच्य का प्रयोक्ता नहीं हो सकता।१०४ स्याद्वादविरोधी मतों में भाव और अभाव का निरपेक्ष अस्तित्व संभव नहीं है, क्योंकि दोनों को एकात्म मानने में विरोध है। यहाँ तो अवाच्यैकान्त भी नहीं बनता, क्योंकि “यह अवाच्य है" ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं हो सकता।०५ .. ‘पदार्थो का सर्वथा सद्भाव ही है' अगर ऐसा मानें तो समस्त पदार्थ अनादिअनन्त और स्वरूप रहित हो जायेंगे ।१०६ ___ अभाव चार प्रकार का है- प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, अन्योन्याभाव और अत्यंताभाव । वस्तु की उत्पत्ति के पूर्व अभाव को प्रागभाव कहते हैं। पदार्थ के नाश के बाद के अभाव को प्रध्वंसाभाव कहते हैं। एक पदार्थ का दूसरे पदार्थ से सापेक्ष अभाव को अन्योयाभाव कहते हैं। पदार्थ के शाश्वत अभाव को अत्यन्ताभाव कहते हैं।
सांख्य पदार्थों का सर्वथा सद्भाव मानते हैं, प्राग्भाव नहीं। और प्राग्भाव न मानने से ‘महद्' आदि तत्त्व अनादि हो जायेंगे, फिर प्रकृति से महदादि की उत्पत्ति बताना व्यर्थ है, जबकि वे प्रकृति से ही उत्पत्ति बताते हैं । १०७ सांख्य 'पुरुष'
और 'प्रकृति' में अत्यन्ताभाव नहीं मानते, तब तो प्रकृति और पुरुष में भेद१०८ व्यर्थ हो जायेगा। ___ चार्वाक प्रागभाव और प्रध्वंसाभाव, दोनों को नहीं मानता। वह भूतों से सर्वथा नवीन उत्पत्ति और उनके वियोग को सर्वथा विनाश मानता है।
मीमांसक भी शब्द को सर्वथा नित्य मानते हैं। यदि शब्द में प्रागभाव को न मानकर नित्य माना जाये तो पुरुष के तालु आदि प्रयत्न को क्या माना जायेगा?
१०४. आप्तमी. तत्वदीपिका टीका. १.१३.१२९.३१ १०५. विरोधान्नोभयै....युज्यते-आ.मी. १.१३ १०६. भौवैकान्ते पदार्थानां.....मतापकम् आ.मी. १.९ १०७. सांख्यकारिका २२. १०८. वही ११
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