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________________ जबकि पर्यायों का परिणमन सादि और सान्त है । द्रव्य शक्तिमान् है । पर्यायशक्ति रूप ‘एकत्वविशिष्ट' की द्रव्य संज्ञा है तो दूसरे (प्रसूत) की पर्याय संज्ञा । द्रव्य एक है, पर्यायें अनेक । द्रव्य का लक्षण अलग है, पर्याय का लक्षण अलग है। प्रयोजन भी दोनों के भिन्न हैं, क्योंकि द्रव्य अन्वयज्ञानादि कराता है जबकि पर्याय व्यतिरेकज्ञान कराता है । द्रव्य त्रिकालगोचर है जबकि पर्याय वर्तमानगोचर । इन नाना कारणों और लक्षणों से द्रव्य की भिन्नता भी है और अभिन्नता भी।१०१ द्रव्य 'गुण' नहीं है और गुण 'द्रव्य' नहीं।१०२ द्रव्य में एकान्तिक प्रतिपादन के दूषण: प्रख्यात दार्शनिक एवं तार्किक आचार्य समन्तभद्र एकान्तवाद में आने वाले दूषणों का आप्तमीमांसा में विशद विश्लेषण करते हैं। ___ बौद्ध दर्शन की शाखा शून्यवाद के अनुसार एक मात्र अभाव ही प्रमाण है। उनके अनुसार अभाव ही सत्य है, भाव तो स्वप्नज्ञान की तरह मिथ्या है। स्वप्न का ज्ञान अनेकों की अपेक्षा स्वप्नदर्शी को ही होता है और वह स्वप्न तक ही सीमित होता है । जगत् का ज्ञान अनेकों को होता है, अधिक स्थायी होता है, पर हैं दोनों मिथ्या। ___ जैन दर्शन के अनुसार, भाव की सत्ता.नहीं मानने वाले मत में इष्ट तत्त्व की सिद्धि नहीं होती। न तो वहाँ बोध प्रमाण है न ही वाक्य । प्रमाण के अभाव में स्वमत की सिद्धि और परमत का खण्डन संभव नहीं है । १०३ ___ मीमांसक सर्वथा भावाभावात्मक रूप वस्तु को मानते हैं, परन्तु यह भी युक्तियुक्त नहीं है, क्योंकि यदि 'भाव' और 'अभाव'- दोनों एकरूप हैं, तो या तो भाव रहेगा या अभाव। ___ सांख्य के मत में व्यक्त और अव्यक्त-दोनों का तादात्म्य है । महत् आदि का प्रकृति में तिरोभाव हो जाता है फिर भी इनका सद्भाव बना रहता है। व्यक्त और अव्यक्त सर्वथा एकरूप हैं तो दोनों में एक ही शेष रहेगा। १०१. द्रव्यपर्याययोरेवयं..... नानात्वं न सर्वथा- आ. मी. ४.७१.७२ १०२. प्र.सा. १०८. १०३. अभावैकांतपक्षेपि......साधानदूषणम् १.१२. ४२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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