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________________ व्यय - ध्रौव्य युक्त हो । ७ स्वभाव में स्थिति का नाम ही सत् है और उत्पाद-व्ययव्य युक्त होना यह पदार्थ का स्वभाव है । ६८ सभी पदार्थ प्रतिक्षण परिणमन के प्रवाह से गुजरते हैं । जो स्थिति प्रथम समय में थी वह दूसरे समय में नहीं होगी, परन्तु परिणमन के कारण सर्वथा नवीनता भी नहीं आती । ६९ पर्याय दृष्टि से वस्तु की उत्पत्ति और विनाश देखे जाते हैं, क्योंकि पर्यायों का परिणमन निर्बाध रूप से हमारे अनुभव में आता है । ७° ७० उत्पादित को परस्पर निरपेक्ष ही मान लिया जाये तो उनकी कल्पना आकाश कुसुम की तरह थोथी होगी । अतः उत्पाद-व्यय रूप परिणमन सापेक्ष है । इस परिणमन का कोई अपवाद नहीं है क्योंकि परिणमन के कारण ही पुण्य, पाप, परलोक गमन, सुखादिफल, बन्ध और मुक्ति संभव हैं । ७१ "जीव द्रव्य मनुष्य रूप से नष्ट हुआ और देव के रूप में पैदा हुआ" ७२ यही परिणमन है । अगर परिणमन स्वभाव नहीं हो तो क्या सृष्टि में परिवर्तन नजर आता? सृष्टि के परिवर्तन का कारण ही सत् का उत्पाद-व्यय रूप परिणमन है जिसे शास्त्रीय भाषा में 'अर्थक्रिया' भी कहते हैं । पर्याय परिणमन के कारण ही ऊर्जा में वृद्धि एवं हानि होती है । सभी पदार्थों में नाना प्रकार की शक्ति है । पदार्थ द्रव्य-क्षेत्र-कालभाव के अनुसार परिणमन करते हैं और उनकी इस परिणमन की क्रिया में कोई बाधक नहीं बन सकता। उदाहरण के लिये भव्यत्व शक्ति से युक्त जीव काल लब्धिको प्राप्त कर मुक्ति को प्राप्त कर लेता है; उसमें कोई बाधक नहीं बन सकता । ३ ६७. प्र. सा. ९५.६९: ६८. प्र. सा. ९९. ६९. सर्वव्यक्तिषु नियतं...व्यवस्थानात् उद्धृतेयम्, अनेकांतवाद - प्र. पृ. ५९. ७०. द्रव्यात्मना सर्वस्य वस्तुनः पर्यायानुभावात्, - षड् समु. टी. ५७.३५७ ७१. उत्पादः केवली प्रतिपतव्यौ अष्टस. पृ. २१९, पुण्यपाप ! न तैषां - आ.मी. ३.४० ७२. मणुसत्तणेण - इदरो वा पं. का. १७. ७३. कामाइ लद्धि जुत्ता "हवे काली" का. प्रे. १०.२१९ Jain Education International ... ..... ३५ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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