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वैशेषिक छह पदार्थ मानते हैं-द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय ।१०४ वैशेषिक मत में द्रव्य का लक्षण है- जिसमें गुण और क्रिया पायी जाय तथा जो कार्य का समवायी कारण हो ।०५ पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, काल, दिक्, आत्मा और मन, ये नौ द्रव्य हैं । १०६ एक अपेक्षा से अद्रव्यत्व और अनेक द्रव्यत्व भी द्रव्य का लक्षण है। आकाश, काल, दिक्, आत्मा, मन और परमाणु अद्रव्य हैं, ये न किसी से उत्पन्न हैं और न किसी के उत्पादक हैं । अवशिष्ट पृथ्वी, जल, तेज और वायु ये अनेक द्रव्य हैं, क्योंकि ये अनेक द्रव्यों से उत्पन्न भी हैं और अनेकों के उत्पादक भी हैं।१०७ ____ वैशेषिक दर्शन ने गुण को भी नितान्त भिन्न माना है। जो एक द्रव्याश्रित हो गुणरहित एवं संयोग-विभाग का सापेक्ष कारण हो, वह गुण है।१०८ रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, द्रवत्व, गुरुत्व, संस्कार, स्नेह, धर्म, अधर्म, और शब्द, ये २४ गुण होते हैं । १०९
वैशेषिक दर्शन की तरह बौद्ध दर्शन भी एक पदार्थ का दूसरे पदार्थ से संबन्ध स्वीकार नहीं करता । परतन्त्रता नाम संबन्ध का है; परन्तु जो वस्तु सिद्ध हो गयी उसमें परतन्त्रता का प्रश्न ही नहीं है, इसीलिए किसी भी पदार्थ में कोई वास्तविक संबन्ध्र नहीं है।११०
---- ---- १०४. स्याद्वादमंजरी ८.४८ । १०५. क्रियागुणवत् समवायिकारणमिति द्रव्यलक्षणम् ।-वैशेषिकसूत्र, १.१.१५ १०६. वैशेषिकदर्शन, १.१.१५ । १०७. दव्यं द्विधा अद्रव्यमनेकद्रव्यं च । न विद्यते द्रव्यं जन्यतया जनकतया च यस्य तदद्रव्यं
द्रव्यम्, यथाकाशकालादि। अनेकं द्रव्यं जन्यतया च जनकतया च यस्य तदनेकद्रव्यं
द्रव्यम् ।- स्याद्वादमंजरी, ४.४९ से उद्धृत १०८. द्रव्याश्रयगुणवान् संयोगविभागेप्वकारणमनपेक्ष इति गुणलक्षणम् ।-वैशेषिकसूत्र १.१.१६ १०९. रूपरसगंध....प्रयत्नश्च ।-वैशेषिकसूत्र, १.१.६ ११०. “पारतंत्र्यं हि संबन्धः सिद्धे का परतन्त्रता । तस्मात् सर्वस्वभावस्य संबंधो नास्ति तत्त्वतः।"
“संबंधपरीक्षा।" -आप्तमीमांसा १.११.१२३ पर उद्धृत
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