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ओर से आक्रमण होते रहते हैं; यही विवादास्पद भूमि दर्शनशास्त्र है। २१
दर्शन शब्द की व्युत्पत्ति एवं उसका अर्थ :.'दर्शन' शब्द के तीन अर्थ सभी दर्शनों में प्रसिद्ध हैं- (१) व्यवहारभाषा में घटदर्शन आदि, अर्थात् चाक्षुषज्ञान के अर्थ में, (२) आत्मा इत्यादि तत्त्वों के साक्षात्कार के अर्थ में एवं (३) न्याय, सांख्य आदि निश्चित विचारसरणी के अर्थ में 'दर्शन' शब्द का प्रयोग सर्वसम्मत है। परन्तु जैन दर्शन में 'दर्शन' शब्द का जो प्रचलित अर्थ है वह अन्य स्थानों पर उपलब्ध नहीं होता। जैन परम्परा में श्रद्धा के अर्थ में 'दर्शन' शब्द का प्रयोग प्राप्त होता है। इसी तरह वस्तु के निर्विशेष सत्तामात्र के बोध को भी दर्शन कहा जाता है। दर्शन चाहे चाक्षुष हो, अचाक्षुष हो या आवधिक, दर्शन मात्र दर्शन होता है, वह न सम्यग् होता है और न मिथ्या। इसे सिद्धसेन ने भी सूचित किया है। २४ श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही संप्रदाय दर्शन को तार्किक रूप से प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं करते। माणिक्यनंदी ने न केवल दर्शन को प्रमाणबाह्य कहा, अपितु उसे प्रमाणाभास भी कहा है ।२५ वादिदेवसूरि ने अपने प्रमाणनयतत्त्वालोक ग्रन्थ में भी यही बात की है।२६ ____ यद्यपि अभयदेवसूरि ने दर्शन को प्रमाण कहा है, परन्तु उसे तार्किक दृष्टिकोण से नहीं, अपितु आगमिक दृष्टि की मुख्यता को दृष्टिगत रखते हुए सम्यग्दर्शन के अर्थ में कहा है ।२७
पंडित सुखलालजी ने दर्शन के ‘साक्षात्कार' अर्थ की अपेक्षा 'सबल प्रतीति' अर्थ पर बल दिया है। क्योंकि अगर ‘साक्षात्कार' अर्थ करें तो विभिन्न दार्शनिकों के मतभेद नहीं होने चाहिए। साक्षात्कार के योग्य पुनर्जन्म, उसका २१. जगदीश सहाय श्रीवास्तव: ग्रीक एवं मध्ययुगीन दर्शन का वैज्ञानिक इतिहास, १.१ २२. तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्। - तत्त्वार्थसूत्र, १.२ २३. विषयविषयिसन्निपातान्तरसमुद्भूतसत्तामात्रागोचरदर्शनात् । - प्रमाणनय, २.७ .. २४. “अत्र च यथा सांकारद्धायां सम्यग्मिथ्यादृष्ट्योर्विशेषः, नैवमस्तिदर्शने, अनाकारत्वे उभयोरपि तुल्यत्वादित्यर्थः।” – तत्वार्थभा., टीका २.९ २५. परीक्षामुख ६.२ २६. अज्ञानात्मकानात्म...... यथा सन्निकर्षा..... ध्यवसाया इति ।-प्रमाण. ६.२४, २५ २७. सन्मति टी. पृ. ४५७
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