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सुख शांति उपलब्ध कर सकती हैं, अपितु जो भी आत्मा ज्ञान, दर्शन और संयममय होती है, वह निर्वाण या मोक्ष के असीम और अक्षय आनंद को प्राप्त कर सकती है।१६ - धार्मिक एवं दार्शनिक उदारता के कारण ही भारतीय दर्शन निरंतर पनपता रहा । और यही वैचारिक उदारता एवं आचार द्वारा लक्ष्य प्राप्ति का आश्वासन, इसकी विशेषता एवं महत्ता को प्रतिपादित करती है।
जहाँ भारतीय दर्शन संसार से मुक्ति या दुःख से मुक्ति के विचार और पद्धति पर प्रतिष्ठित है, वहीं पाश्चात्य विचारपद्धति के विकास के दूसरे (सांसारिक) कारण हैं।
पाश्चात्य दर्शन की विशेषता एवं पद्धतिः
लिटी की यह सर्वप्रसिद्ध उक्ति है कि दर्शन का जन्म आश्चर्य से होता है । ७ पाश्चात्य दर्शन के इतिहास में यह बात स्पष्ट झलकती है कि उनके जीवन का लक्ष्य नाम के आधार पर प्रज्ञावान् या बुद्धिमान् होना ही है। कुछ ही अपवाद मिल सकते हैं जिन्होंने आचरण शुद्धि तथा मन की परिशुद्धता के आधार पर परम सत्ता के साक्षात्कार को अपना उद्देश्य और आदर्श माना है; और यह आदर्श भी प्राच्य है न कि पाश्चात्य । पाश्चात्य विद्वान् तो आचरण की अपेक्षा ज्ञान पर अधिक जोर देते हैं । १९
ब्रिटेन के विश्वविख्यात रसेल के अनुसार दर्शन का अपना कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है; वह धर्म एवं विज्ञान के महत्व की वस्तु है। रसेल के अनुसार विज्ञान एवं धर्मशास्त्र के अधिकार क्षेत्र के मध्य एक ऐसी अनाथ अथवा विवादास्पद भूमि (No man's Land) होती है जिसके ऊपर नित्य ही दोनों
१६. संपजदि णिव्वाणं....दसणणाणप्पहाणादी । प्र.सा.६ १७. फिलॉसफी बिगिन्स इन वंडर। - डॉ. राधाकृष्णन् : भारतीय दर्शन भाग २, पृ.९ १८. याकूब मसीह : पाश्चात्य आधुनिक दर्शन की समीक्षात्मक व्याख्या का विषय प्रवेश,
पृ.१ १९. वही। २०. बट्रेण्ड रसेलः हिस्ट्री ऑफ वेस्टर्न फिलॉसाफी इन्ट्रोडक्शन, पृ. १०
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