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________________ ६. श्वासोच्छ्वास वर्गणाः- यह श्वास लेने और निकालने योग्य पुद्गल समूह है। आधुनिक विज्ञान में इसे आक्सीजन के नाम से जाना जाता है। ७. भाषा वर्गणाः- शब्द भी (वचन) पुद्गल की ही पर्याय है; क्योंकि बोलते समय भाषा का भेदन-बिखराव होता है। यह चार प्रकार की है- सत्य, असत्य, मिश्र और व्यवहार भाषा ।१०९ ८. मनोवर्गणाः - मन भी पुद्गल का समूह है। यह मनन करते समय ही मन कहलता है । मन आत्मा नहीं है, अतः पुद्गल है। मन का भेदन होता है, अतः पुद्गल है। मन चार प्रकार का है- सत्य मन, असत्य मन, मिश्र मन, और व्यवहार मन ।११० पुद्गल का स्वभाव चतुष्टयः पुद्गल का विशद परिचय प्राप्त करने के लिए उसे चार दृष्टिकोणों से विश्लेषित किया गया है- द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । द्रव्य की अपेक्षा अनन्त द्रव्य है। क्षेत्र की अपेक्षा लोकप्रमाण है। काल की अपेक्षा शाश्वत है (परमाणु की अपेक्षा), और भाव की अपेक्षा वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श से युक्त है, और गुण की अपेक्षा ग्रहण गुण की योग्यता वाला है ।१११ क्षुल्लक जिनेन्द्रवर्णी ने इसे और ज्यादा स्पष्ट किया है-स्वभाव की धारणा करने वाला जो भी है, उसे द्रव्य कहते हैं। उसके आकार को क्षेत्र कहते हैं। उसके अवस्थान को काल कहते हैं तथा उसके धर्म और गुणं को भाव कहते हैं। स्वद्रव्य की अपेक्षा सामान्य रूप से पुद्गल द्रव्य एक है, परन्तु प्रदेशात्मक परमाणु अनन्तानन्त हैं। एक बालाग्र स्थान पर अनन्तानन्त परमाणु रहते हैं। स्वक्षेत्र की अपेक्षा सामान्यरूप से परमाणु एक प्रदेशी है, परन्तु विशेष रूप से छोटे-बड़े आकारों को धारण करने वाले स्कन्ध अनेक प्रकार के हैं, कुछ संख्यात, कुछ असंख्यात और कुछ अनन्तप्रदेशी हैं। १०९. भगवती १३.७.७.९ ११०. भगवती १३.७. १०-१४ १११. ठाणांग ५.१७४ २३४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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