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________________ बन्ध के विषय में श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में कुछ असमानता है। इसका कारण तत्त्वार्थसूत्र के पाँचवें अध्याय के सूत्र ३७ में पाठभेद है । दिगम्बर परम्परा में "बन्धेधिकौ पारिणामिकौ च " है, जबकि श्वेताम्बर परम्परा में "बन्धे समाधिकौ पारिणामिकौ" पाठ है । इसका तात्पर्य है, स्निग्ध का द्विगुण रूक्ष भी पारिणामिक होता है, जबकि दिगम्बर मान्यता है कि चाहे सदृश हो या विसदृश, दो अधिक गुणवाले का ही बन्ध होता है, अन्य का नहीं । जैसे दो का चार के साथ और तीन का पाँच के साथ । ७९ सूक्ष्मता - स्थूलता : सूक्ष्मता का अर्थ है छोटापन। यह दो प्रकार की है- अत्यन्तसूक्ष्मता और आपेक्षिक सूक्ष्मता । अत्यन्त सूक्ष्मता परमाणु में पायी जाती है और आपेक्षिक सूक्ष्मता दो वस्तुओं की तुलना द्वारा ज्ञात होती है, जैसे आँवले की अपेक्षा बेर अधिक सूक्ष्म है । स्थूलता का तात्पर्य है बड़ापन । यह भी दो प्रकार की होती है- अत्यन्त स्थूलता और आपेक्षिक स्थूलता । अत्यन्त स्थूल है- अचित्त महास्कंध, और आपेक्षिक स्थूल है - बेर की अपेक्षा आंक्ला । " संस्थान : संस्थान (आकृति) पर्याय दो प्रकार से है- १ इत्थंलक्षण और २. अनित्थंलक्षण । इत्यंलक्षण जिसको परिभाषित किया जा सके, जैसे गोल, तिकोना, चौकोर, लम्बा, चोड़ा आदि । - अनित्थंलक्षण:- जिसको परिभाषित नहीं किया जा सके। जैसे बादल की आकृति आदि ।" भेदः - पुद्रल की छठी अवस्था है भेद । भेद का अर्थ है विभाजन | यह अवस्था स्कन्ध के टूटने से होती है । यह छः प्रकार की है - उत्कर, चूर्ण, खण्ड, चूर्णिका, ७९. त. रा. वा. ५.३६.२.४९९ ८०. त.रा.वा. ५.२४ १०-११ ४८८ एवं स. सि. ५.२४५७२ ८१. त. रा. वा. ५.२४१२-१३४८८-८९ Jain Education International २२४ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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