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________________ वह स्नेह है उसके विपरीत रूक्षता है। दो स्निग्ध और रूक्ष परमाणुओं में बन्ध होने पर द्वयणुक स्कन्ध होता है । स्नेह और रूक्ष इन दोनों के अनन्त भेद हैं । अविभाग परिच्छेद एक गुणवाला स्नेह सर्वजघन्य प्रथम भेद है। इसी तरह दो, तीन, चार, संख्यात, असंख्यात और अनन्तगुण भेद से स्नेह-रूक्ष के अनन्त विकल्प हैं। जैसे जल से बकरी के दूध/घी में, बकरी के दूध से गाय के दूध और घी में अधिक स्निग्धता है । उसी तरह क्रमशः धूल से प्रकृष्ट रूखापन तुषखंड में और उससे भी प्रकृष्ट रूक्षता रेत में पायी जाती है। इसी तरह परमाणुओं में भी स्निग्धता और रूक्षता के प्रकर्ष और अपकर्ष का अनुमान होता है।७२ परन्तु सर्वजघन्य गुणवाले (अविभागी और एकगुणवाला सर्वजघन्य कहलाता है।) परमाणुओं में बन्ध नहीं होता। समान अंश, समान गुण (दो, चार, छः और केवल स्निन्ध या केवल रूक्ष सदृश परमाणु) रहने पर भी बन्ध नहीं होता।७५ स्निग्धता या रूक्षता में दो अंश आदि अधिक हों तो सदृश परमाणुं मिलकर स्कन्ध बना सकते हैं। जैसे दो परमाणुओं का चार परमाणुओं के साथ बन्ध हो सकता है।६ बन्ध होने पर अधिक गुणवाला न्यूनगुणवाले का अपने रूप में परिणमन करवा लेता है। इसको अधिक स्पष्ट करने के उद्देश्य से अकलंक ने कहा- 'तात्पर्य यह कि दो गुण स्निग्ध परमाणु को चारगुण रूक्ष परमाणु पारिणामिक होता है, बन्ध होने पर एक तीसरी ही विलक्षण अवस्था होकर एक स्कन्ध बन जाता है। अन्यथा सफेद और काले धागे के संयोग होने पर भी दोनों पहले जैसे रखे रहेंगे। जहाँ पारिणामिकता होती है वहाँ स्पर्श, रस गन्ध, वर्ण आदि में परिवर्तन हो जाता है। जैसे शुक्ल और पीत रंगों के मिलने पर हरे रंग के पत्र आदि उत्पन्न होते हैं।७८ ७३ त.रा.वा. ५.३३. १.५, ४९७-९८ ७४. त.सू. ५.३४ ७५. त.सू. ५.३५ ७६. त.सू. ५.३६ ७७. त.सू. ५.३७ ७८. तारा.वा. ५.३७.२.५०० २२३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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