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________________ अनन्त समितियों के संगठन से तन्तु के ऊपर का एक रेशा बनता है। इन सबका छेदन क्रमशः होता है। तन्तु के पहले रेशे के छेदन में जितना समय लगता है, उसका अत्यन्त सूक्ष्म अंश यानी असंख्यातवां भाग समय कहलाता काल का उपकार :- क्रिया मात्र काल के कारण ही संभव है। चाहे पदार्थ सजीव हों या निर्जीव हों, उनमें परिवर्तन तो काल के कारण ही संभव है। वह काल सूक्ष्म भी हो सकता है, स्थूल भी। परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं कि यह किसी पदार्थ में बलपूर्वक परिवर्तन लाता है।९२ परिवर्तन दो प्रकार का होता है- क्षेत्रात्मक और भावात्मक । क्षेत्रात्मक परिवर्तन कभी-कभी और कहीं-कहीं संभव होता है, परन्तु भावात्मक परिवर्तन सर्वत्र और सदैव रहता है। क्षेत्रात्मक परिवर्तन किसी-किसी पदार्थ में होता है। परन्तु भावात्मक परिवर्तन सदा पदार्थों में होता है। चाहे वह मूर्तिक हो या अमूर्त्तिक ।१३ भावात्मक परिवर्तन,दो प्रकार का होता है- सूक्ष्म तथा स्थूल । सूक्ष्म परिवर्तन वह है जो प्रतिपल पदार्थों में होता है, स्थूल परिवर्तन प्रतीति में आ जाता है। हम इन्द्रियज्ञान से स्थूल परिवर्तन देख सकते हैं । परन्तु इससे यह नहीं समझें कि सूक्ष्म परिवर्तन होता ही नहीं। सूक्ष्म के अभाव में स्थूल परिवर्तन संभव नहीं है । स्थूल परिवर्तन जीव और पुद्गल में ही होता है, परन्तु सूक्ष्म परिवर्तन तो छहों द्रव्यों में पाया जाता है। क्योंकि उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य युक्त ही द्रव्य हो सकता है। सूक्ष्म तथा स्थूल दोनों प्रकार के परिवर्तन में काल ही उपकारी या सहायक है। क्रिया में सहायक काल है:- जितनी भी क्रियाएँ होती हैं, वे सब काल के कारण ही संभव हैं।१५ यदि काल न हो तो हमारी गतिक्रिया या आयु संबन्धी किसी प्रकार का अनुक्रम नहीं बन सकेगा। यहाँ एक प्रश्न हो सकता है कि आकाश ९२. भगवती अ. वृत्ति पृ. ५३५ ९३. धवला ४.१.५.१.७.३.३१७ ९४. पदार्थ विज्ञान- ले. जिनेन्द्रवर्णी पृ. १९६.९७ ९५, जैनेन्द्र सिद्धांतकोष पृ. ८३ २०३ . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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