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________________ ३. मरणकाल- शरीर का जीव से या जीव का शरीर से वियुक्त होना, अलग होना मरणकाल है। ४. अद्धाकाल- अद्धाकाल अनेक प्रकार का है। सूर्यचन्द्र आदि की गति से संबन्ध रखने वाला अद्धाकाल है। काल का मुख्य रूप अद्धाकाल है, शेष तीनों इसके विशिष्ट रूप हैं। अद्धाकाल व्यावहारिक है, वह मनुष्यलोक में ही होता है, और इसलिए मनुष्यलोक को समयक्षेत्र कहा जाता है। निश्चयकाल-काल जीव-अजीव का पर्याय है, वह लोकालोक व्यापी है, उसके विभाग नहीं होते। समय से लेकर पुद्गल परावर्तन तक के जितने विभाग हैं, वेसब अद्धाकाल के हैं। समय उसे कहते हैं जो अविभाज्य हैं। इसको कमलशतपत्रभेदन्याय-कमलपत्रों के भेदन एवं वस्त्रविदारण द्वारा स्पष्ट समझा जा सकता है(क) एक दूसरे से सटे हुए सौ कमल के पत्तों को कोई बलवान् व्यक्ति सुई से छेद देता है, तब ऐसा ही लगता है कि सब पत्ते एक साथ छिद गये, परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता कि सब पत्ते एक साथ्र छिद गये। जिस समय पहला पत्ता छेदा गया, उस समय दूसरा नहीं। सभी अलग-अलग समय में ही छेदे जाते हैं और यह क्रमशः होता है। (ख) एक कलाकुशल युवा और बलिष्ठ जुलाहा जीर्ण-शीर्ण वस्त्र या साड़ी को शीघ्र ही फाड़ देता है और इतनी शीघ्र यह क्रिया होती है कि ऐसा लगता है कि एक ही समय में सारा वस्त्र फट गया, परन्तु ऐसा होता नहीं। वस्त्र अनेक तन्तुओं से बनता है, जब तक ऊपर के तन्तु नहीं फटते, तब तक नीचे के तन्तु नहीं फटते । अतः यह निश्चित है कि वस्त्र फटने में काल-भेद होता वस्त्र अनेक तन्तुओं का बना होता है। प्रत्येक तन्तु में अनेक रेशे होते हैं। उसमें भी ऊपर का रेशा पहले छिदता है, तब कहीं उसके नीचे का रेशा छिदता है। अनन्त परमाणुओं के मिलन का नाम संघात है । अनन्त संघातों का एक समुदाय और अनन्त समुदायों की एक समिति होती है और ऐसी ९१. भगवती ११.११.४६ २०२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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