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तथा देशिक परत्व और देशिक अपरत्व । कालिक अर्थात् समय से संबन्ध रखनेवाला तथा देशिक अर्थात् स्थान से संबन्ध रखने वाला। जैसे आयु का बड़पन्न काल का द्योतक होता है, अत: कालिक परत्व कहा जाता है और आयु में छोटेपन को कालिक अपरत्व कहा जाता है। इसी तरह देशिक परत्व तथा देशिक अपरत्व को समझा जा सकता है। परिणाम के संबंध में कुछ तर्क :
कुछ शंकाकार यहाँ परिणाम जो कि काल का दूसरा लक्षण है, को लेकर प्रश्न करते हैं कि बीज अंकुर में है या नहीं? यदि है तो वह अंकुर नहीं कहा जा सकता, यदि नहीं है तो यह मानना होगा कि बीज अंकुर रूप से परिणत नहीं हुआ; क्योंकि उसमें बीज स्वभावतः नहीं है। इस प्रकार अस्तित्व-नास्तित्व दोनों पक्ष में दोष आयेंगे। ___आचार्य अकलंक इसका समाधान करते हैं कि कथंचित् अस्तित्व-नास्तित्व में दोषों का आगमन संभव नहीं है। 'सदसद्वाद' नरसिंह की तरह जात्यन्तर रूप है। इसे शालिबीजादि के उदाहरण द्वारा और भी स्पष्ट किया है। जैसे शालिबीजादि द्रव्यार्थिक दृष्टि से अंकुर में बीज हैं, यदि उसका संपूर्णतः विनाश हो गया होता तो शालि का अंकुर क्यों कहलाता ? शालिबीज और शाल्यंकुर रूप पर्यायार्थिक दृष्टि से अंकुर में बीज नहीं है; क्योंकि बीज का यदि परिणमन नहीं हुआ होता तो अंकुर कहाँ से आता?
बीज अंकुर से भिन्न है या अभिन्न? यदि भिन्न है तो वह बीज़ का परिणमन नहीं कहा जा सकता। अगर अभिन्न है तो उसे अंकुर नहीं कह सकते। कहा भी है- यदि बीज स्वयं परिणत हुआ है तो अंकुर बीज से भिन्न नहीं हो सकता; परन्तु ऐसा नहीं है। यदि भिन्न है तो उसे अंकुर नहीं कह सकते, इस प्रकार परिणाम सिद्ध नहीं हो सकता।९. - इसका समाधान तत्त्वार्थवार्तिक में इस प्रकार उपलब्ध होता है- इसका समाधान भी स्याद्वाद में प्राप्त हो जाता है कि अंकुर की उत्पत्ति के पहले बीज में अंकुर पर्याय नहीं थी, बाद में उत्पन्न हुई। अत: पर्याय की दृष्टि से अंकुर बीज से भिन्न है, और चूँकि शालिबीज की जातिवाला ही अंकुर उत्पन्न हुआ है, अन्य
७९. तर्क भाषा पृ. १८८ एवं प्रशस्तपादकृत पदार्थ धर्म संग्रह पृ. १६४ से आगे।
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