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इस भूमण्डल के नीचे दस-दस हजार योजन के सात पाताल हैं । यहाँ उत्तम भवनों से युक्त भूमियाँ हैं तथा दानव, दैत्य, यक्ष और नाग आदि यहाँ रहते हैं।"
पाताल के नीचे विष्णु भगवान् का शेष नामक तामस शरीर स्थित है, जो अनन्त कहलाता है। यह सहस्रफणों से संयुक्त होकर समस्त पृथ्वी को धारण करके पाताल मूल में स्थित है। कल्पान्त के समय इसके मुँह से निकली संकर्षात्मक रुद्र विषाग्नि-शिखा तीनों लोकों का भक्षण करती है ।२२ नरकलोक:- पृथ्वी और जल के नीचे रौरव, सूकर रोध, लाल विशासन महाज्वाल, इत्यादि नाम वाले अनेक महान् भयानक नरक हैं। पापी जीव मृत्यु पाकर इन नरकों में जन्म ग्रहण करते हैं। नरक से निकलकर ये जीव क्रमशः स्थावर, कृमि, जलचर, मनुष्य, देव आदि होते हैं। जितने जीव स्वर्ग में हैं, उतने ही जीव नरक में भी हैं।१४ ज्योतिर्लोकः- भूमि से एक लाख योजन की दूरी पर सौरमण्डल है। इससे एक लाख योजन ऊपर नक्षत्रमंडल, इससे दो लाख योजन ऊपर बुध, इससे दो लाख योजन ऊपर शुक्र, इससे दो लाख योजन ऊपर मंगल, इससे दो लाख योजन पर बृहस्पति, इससे दो लाख योजन पर शनि, इससे एक लाख योजन पर सप्तर्षिमण्डल तथा इससे एक लाख योजन ऊपर ध्रुवतारा है।९५ महर्लोक (स्वर्गलोक):- ध्रुव से एक योजन ऊपर महर्लोक है। वहाँ कल्पकाल तक जीवित रहने वाले कल्पवासियों का निवास है। इससे दो करोड़ योजन ऊपर जनलोक है । यहाँ नन्दनादि से युक्त ब्रह्माणी के पुत्र रहते हैं। इससे आठ करोड़ योजन ऊपर तपोलोक है, जहाँ वैराज देव निवास करते हैं। इससे बारह करोड़ योजन ऊपर सत्यलोक है, यहाँ कभी न मरने वाले अमर रहते हैं। इसे ब्रह्मलोक भी कहते हैं। भूमि और सूर्य के मध्य में सिद्धजनों और मुनिजनों से सेवित स्थान
९१. विष्णुपुराण दि. अ. पंचम अध्याय गा. २.४ ९२. विष्णुपुराण दि. अ. पंचम अध्याय ९३-९६ ९३. विष्णुपुराण दि. अ. पंचम अध्याय गा. १-६ ९४. विष्णुपुराण दि. अ. पंचम अध्याय गा. ३४ ९५. विष्णुपुराण दि. अंश सप्तम अध्याय गा. २-९
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