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________________ ये सभी चूड़ी के समान गोलाकार और क्रमशः सात समुद्रों से वेष्टित हैं । इन सभी के मध्य जम्बूद्वीप है। इसका विस्तार एकलाख योजन है। इसके मध्यभाग में ८४ हजार योजन ऊँचा स्वर्णमय मेरुपर्वत है। इसकी नींव पृथ्वी के भीतर १६ हजार योजन है। मेरु का विस्तार मूल में १६ हजार योजन है, फिर क्रमशः बढ़कर शिखर पर ३२ हजार योजन हो गया है।८६ . आगे जाकर हिमवान् आदि छः वर्षपर्वतों से इस जम्बूद्वीप के सात भाग हो जाते हैं। मेरु पर्वत के पूर्वादिक दिशाओं में क्रमशः मन्दर, गंधमादन, विपुल और सुपार्श्व नाम वाले चार पर्वत हैं। इनके ऊपर क्रमशः ११०० योजन ऊँचे कदम्ब, जम्बू, पीपल और वटवृक्ष हैं। इनमें से जम्बूवृक्ष के नाम से यह जम्बूद्वीप कहलाता जम्बूद्वीप के इन पर्वतों द्वारा भी सात भाग होते हैं- भारतवर्ष, किम्पुरुष, हरिवर्ष, इलावृत्त, रम्यक, हिरण्मय और उत्तरकुरु।८ ... इन सात क्षेत्रों में से मात्र जम्बूद्वीप में ही काल परिवर्तन होता है। किंपुरुषादिक में काल परिवर्तन नहीं होता । यहाँ के निवासियों को किसी प्रकार के शोक, परिश्रम, क्षुधा आदि की बाधा नहीं होती। स्वरूप-सुखी, आतंक रहित इनका जीवन होता है। यह भोगभूमि है। यहाँ पर पाप आदि भी नहीं है। स्वर्ग, मुक्ति, आदि की प्राप्ति के लिए की जानेवाली तपश्चर्या व्रतादि भी यहाँ नहीं हैं। मात्र भारतवर्ष के लोग ही मुक्ति आदि को पाने का प्रयास कर सकते हैं। यहाँ के लोग असि, मषि आदि कर्म करते हैं, अतः यह कर्मभूमि भी कहलाती है। यह सभी क्षेत्रों में सर्वश्रेष्ठ क्षेत्र माना गया है।९० ८६. विष्णु पुराण द्वितीयांश द्वितीय अध्याय श्लोक ५.९ ८७. विष्णु पुराण द्वितीयांश द्वितीय अध्याय श्लोक १७-१९ ८८. विष्णु पुराणं द्वितीयांश द्वितीय अध्याय श्लोक १०-१५ ८९. कर्मभूमिरयं स्वर्गमपवर्गच गच्छताम्-अग्निपुराण अध्यायन २ गाथा ११८ ९०. उत्तर यत्समुद्रस्य हिमादेश दक्षिणम् । वर्षं तद्भारतं नाम, भारती यत्र संतति । · नवयोजनसाहस्रो, विस्तारोस्य महामुने । कर्मभूमिरियं स्वर्गमवर्गच गच्छताम् ।। अतः संप्राप्यतिस्वर्गो, मुक्तिमस्मात् प्रायान्ति वै। तिर्यक्त्वं नरकं चापि, यान्त्यतः पुरुषामुने ।। इतः स्वर्गश्च मोक्षश्न, मध्यं चान्तश्व गम्यते । तत्खल्वन्यत्र मानां, कर्मभूमौ विधीयते ।।. विष्णुपुराण द्वितीयांश का तीसरा अध्ययन गा. १९.२२ १७७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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