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________________ भुवनलोक कहलाता है। सूर्य और ध्रुव के मध्य चौदह लाख योजन प्रमाण क्षेत्र स्वर्लोक नाम से प्रसिद्ध है । ९६‍ समीक्षा : 1 वैदिक और जैनदर्शन द्वारा मान्य लोक के विवेचन में समानता और असमानता दोनों हैं । वैदिक दर्शन भोगभूमि व कर्मभूमि मानता है और जैन दर्शन भी यही मानता हैं । द्वीपों में समानता और असमानता दोनों हैं । समुद्र, क्षेत्र, पर्वत आदि की अपेक्षा से भिन्नता भी है और समानता भी । " भारतवर्ष को दोनों ने कर्मभूमि मानते हुए सर्वश्रेष्ठ भूमि बताया है । लोक के भेद प्रभेदः - क्षेत्रलोक तीन प्रकार का होता है- अधोलोक क्षेत्रलोक, तिर्यक्कलोक क्षेत्रलोक एवं ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोक । " अधोलोक क्षेत्रलोक:- सात प्रकार का है: - रत्नप्रभापृथ्वी, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमः प्रभा, महातमः प्रभापृथ्वी अधोलोक । तिर्यग्लोक क्षेत्रलोकः - यह असंख्यात प्रकार का है।" इसमें जम्बूद्वीप आदि शुभ नामवाले द्वीप और लवणोद आदि शुभनामवाले समुद्र हैं। ° लोक में जितने की शुभनाम हैं, उन सभी नामों वाले वे द्वीप - समुद्र हैं। जम्बूद्वीप से स्वयंभूरमण पर्यंत असंख्यात द्वीप - समुद्र इस तियक् क्षेत्रलोक में हैं । ' सभी द्वीप और समुद्र दुगुणे- दुगुणे व्यास वाले पूर्व - पूर्व द्वीप और समुद्र htag करने वाले और चूड़ी के आकारवाले हैं।' अर्थात् इन द्वीपों और समुद्रों का विस्तार और रचना नगरों की तरह न होकर उत्तरोत्तर वे द्वीप और समुद्र एक दूसरे को घेरे हुए हैं। * ९६. विष्णुपुराण द्वितीय अंश षष्ठम अध्याय १२.१८ ९७. गणितानुयोग प्रस्तावना ल. ८८ ९८. भगवती ११.०३ एवं त.सू. ३.१ ९९. भगवती ११.१० १००. त. सू. ३.७ १. स. सि. ३.६.३८१ २.. ३. द्विद्विविष्कममाः पर्व पूर्व परिक्षेपिका वलयाकृतय..... - त. सू. ३.८ स. सि. ३.८.३८१ Jain Education International १७९ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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