SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुक्ति की प्राप्ति के भेदः- क्षेत्र, काल, गति, लिङ्ग, तीर्थ, चारित्र, प्रत्येकबुद्ध, बोधितबुद्ध, ज्ञान, अवगाहना, अंतर संख्या और अल्पबहुत्व इन बारह अनुयोगों से सिद्धों में भेद पाया जाता है ।५०९ मुक्ति का साधनः- तत्त्वार्थसूत्र में उमास्वाति ने मुक्ति का मार्ग सम्यग्दर्शन, ज्ञान व चारित्र को माना है ।५९० - समयसार में कुन्दकुन्दाचार्य के अनुसार जो आत्मा को और बन्ध को जानकर बन्ध से विरक्त होता है, वही मोक्ष की प्राप्ति करता है । ११ । - आत्मा और बन्ध प्रज्ञारूपी छेनी द्वारा भिन्न किये जाते हैं ।५१२ प्रज्ञा के द्वारा भिन्न किया हुआ (बन्ध और चैतन्य) शुद्ध आत्म-स्वरूप ही मेरा है, अन्य सब परद्रव्य हैं, ऐसा मानना चाहिये । ५९२ कुन्दकुन्दाचार्य ने समयसार में आगे यह भी स्पष्ट किया है कि मात्र जानना ही पर्याप्त नहीं है । बन्ध, स्थिति, स्वभाव आदि को जानने मात्र से मुक्ति नहीं मिलती, परन्तु उन बन्धनों को काटने की अनुकूल प्रक्रिया अपनाने पर ही, अर्थात् रागादि भाव से जीव जब शुद्ध होने पर ही उसे मुक्ति प्राप्त होती है।५९४ संसार में जीवों की संख्या एवं जैनसिद्धान्त:.. अनन्त जीव आज तक मुक्ति प्राप्त कर चुके हैं, परन्तु संसार में आत्माएँ फिर भी बनी रहती हैं, उसमें कोई कमी नहीं आयी क्योंकि जीव अनादि अनन्त हैं। गणित का भी यह नियम है कि अनन्त में से अनन्त निकालें, फिर भी बाकी अनन्त ही रहेंगे। जितने जीव मोक्षजाते हैं, उतने ही जीव निगोद से निकलते हैं । अतः संसार में जीव जितने हैं, उतने ही रहते हैं । निगोद का स्वरूप इस प्रकार स्पष्ट किया है ५०९. त.सू. १०.९ ५१०. त.सू. १.१ ५११. स.सा. २९४ ५१२. स.सा. २९४.५ ५१३. स.सा. २९६ ५१४. स.सा. २८८.९ १५४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy