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________________ सिद्ध बनने के पश्चात् उनमें पुनः संसार या कर्मबन्ध की संभावना नहीं होती, क्योंकि बन्धन रूप कार्य का सर्वथा उच्छेद हो जाता है। कारण समाप्त होने के बाद भी यदि कार्य हो तो जीव का मोक्ष नहीं हो सकता ।४९६ भगवतीसूत्र में भी इसी प्रकार की चर्चा है जिसने संसार का निरोध किया है, वह पुनः मनुष्यभव को धारण नहीं करता।४९७ सिद्धों के अवगाहन शक्ति होती है । अल्प अवगाह में भी अनेक सिद्धों का अवगाह हो जाता है। जब मूर्त्तिमान् दीपकों का भी अल्पाकाश में अविरोधी अवगाह हो सकता है, तब सिद्धों के अमूर्त होने कारण विरोध का प्रश्न ही नहीं है। सांसारिक सुख सादि-सान्त तथा उतार-चढ़ाव वाला है, परन्तु सिद्धात्मा का सुख परम अनन्त है। सांसारिक सुख और मोक्ष सुख में सूक्ष्म समानता भी नहीं है, क्योंकि सांसारिक सुख विषयभोगजन्य होता है जबकि मोक्षसुख आत्मानुभवजन्य होता है। मुक्त जीव का लोकान्तगमन:- संपूर्ण कर्मों का उच्छेद हो जाने पर, ऊर्ध्वगमन स्वभाव के कारण मुक्त जीव ऊर्ध्वगमन करता है । ९९ वाचक उमास्वाति ने तत्त्वार्थसूत्र में ऊर्ध्वगमन के चार कारण बताये हैं-पूर्व के संस्कार से ,कर्म के संगरहित हो जोने से, बन्धन के उच्छेद से, और ऊर्ध्वगमन का स्वभाव होने के कारण मुक्त जीव ऊर्ध्वगमन ही करते हैं ।५०० "हा १. पूर्व के संस्कार:- जिस प्रकार कुम्हार अपना हाथ हटा ले तो भी पूर्व प्रयोग के कारण संस्कारक्षय तक चक्र घूमता रहता है, वैसे ही संसारी आत्मा ने अपवर्ग (मोक्ष) प्राप्ति के लिये प्रयत्न किया है, परन्तु कर्मसहित होने के कारण बिना नियम गमन करता है और कर्ममुक्ति होने के कारण नियमपूर्वक गमन करता है।५०१ ४९६. तत्त्वार्थ रा.वा. १०.४.४.६४२ ४९७. भगवती ४९८. त.रा.वा.१०.४.९.११ पृ. ६४३ ४९९. त.सू. १०.५ ५००. त.सू. १०.६ ५०१. त.सू.वा. १०.७.२.६४५ १५२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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