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________________ ' हा गटर में, शहर के गटर अथवा संपूर्ण अपवित्र स्थानों में ये पैदा होते हैं।२९८ आधुनिक भाषा में यदि कहा जाये तो गर्भज मनुष्यों के शरीर की कोशिकाओं (Body cells) से पुद्गलों का ग्रहण करके इनका जन्म होता है। गर्भज मनुष्य कर्मभूमि, अकर्मभूमि एवं अन्तर्वीप में पैदा होते हैं।२९९ अन्तीपज ५८ प्रकार के, कर्मभूमिज १५ प्रकार के एवं अकर्मभूमिज ३० प्रकार के होते हैं ।३०० ३. देव :- देवों के चार निकाय होते हैं। भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक । ३०१ इनमें कृष्ण, नील, कापोत और पीत लेश्या पायी जाती हैं ।३०२ . भवनवासी देव दस प्रकार के हैं३०३, व्यन्तर आठ प्रकार के और ज्योतिषी पाँच प्रकार के हैं । वैमानिक देव दो प्रकार के हैं- कल्पोपन्न और कल्पातीत ।२०४ कल्पोपन्न देव बारह प्रकार के हैं, एवं कल्पातीत देव ग्रैवेयकवासी और अनुत्तरवासी भेद से पुनः दो प्रकार के हैं । ग्रैवेयक नौ प्रकार के एवं अनुत्तरवासी पाँच प्रकार के हैं।३०५ __भवनपति देव मनुष्यलोक से नीचे रहते हैं। इनके निवास का विस्तृत विवेचन प्रज्ञापना सूत्र १७७-१८६ में देखा जा सकता है। व्यन्तर और ज्योतिष्क क्रमशः विषम और तिरछे रूप से रहते हैं ।३०६ वैमानिक क्रमशः ऊपर-ऊपर रहते हैं।३०५ वैमानिक ऐशान अर्थात् द्वितीय विमानवासी देवों तक के देव शरीरसंपर्क द्वारा विषयभोग भोगते हैं।३०८ शेष देव २९८. प्रज्ञापना १.३९ २९९. प्रज्ञापना १.९४ ३००. प्रज्ञापना १.९५-९७ ३०१. ठाणांग ४.१२४ एवं त.सू. ४.१ ३०२. त.सू. ४.२ ३०३. त.सू. ४.११ ३०४. त.सू. ४.११.१२.११ त.सू. ४.१६.१७ एवं प्रज्ञापना १.१४३ ३०५. प्रज्ञापना १.१४४-१४७ ३०६. स.सि. ४१८-४७७ ३०७. त.सू. ४.१९ ३०८. त.सू. ४.८ १२० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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