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________________ स्वतः भी होता है और परतः भी। ___ वनस्पति स्त्रीलिंगी, पुल्लिंगी और उभयलिंगी होते हैं। जब किसी उभयलिंगी वनस्पति के पुष्प का परागकण उसी पुष्प के अवयव योनिछत्र तक पहुँचता है, तो वह स्वसेचन कहलता है। जैसे कृष्णकोली, सूर्यमुखी आदि फूलों का स्वसेचन होता है। पुंल्लिंगी वनस्पति के पुष्प का पराग-कण अन्य कीट, पतंग, वायु, जल आदि के माध्यम से उसी जाति के स्त्रीलिंगी वनस्पति के पुष्पावयव योनिच्छत्र पर पहुँचता है तो परसेचन कहलाता है। भ्रूण विज्ञान (वनस्पति विज्ञान की उपशाखा) इसी विषय पर आधारित है। भारतीय वैज्ञानिक प्रो. पंचानन माहेश्वरी भ्रूण वैज्ञानिकों में अग्रणी है, जिन्होंने अनेकों प्रयोग इस विषय पर किये हैं ।२६८ अनुकूलन (Adaptation) :- प्राणियों की तरह वनस्पति भी अपने आप को परिस्थिति के अनुसार ढाल लेती हैं। रेगिस्तानी पौधों की पत्तियाँ सजल स्थानों के पौधों की अपेक्षा छोटी होती हैं ताकि उनसे भाप बनकर पानी कम उड़े। विर्सजन(Excreation):- श्वसन की तरह इनमें विसर्जन क्रिया भी पत्तों द्वारा संपन्न होती है। . मृत्यु (Death):- जीवित पौधे प्रारम्भ में तेजी से वृद्धि करते हैं, परन्तु बाद में यह गति धीमी हो जाती है और अन्त में वे पौधे मुरझा जाते हैं, जो उनका मरण कहलाता है। त्रैमासिक, षण्मासिक, एकवर्षीय, द्विवर्षीय, बहुवर्षीय भेद से वनस्पति अनेक प्रकार की आयु वाले होते हैं। वनस्पति के भेद :___जैन दर्शन के अनुसार वनस्पति के दो भेद हैं । सूक्ष्म वनस्पतिकाय और बादर वनस्पतिकाय ।२६९ .. प्रत्येक वनस्पति अर्थात् एक शरीराश्रित एक ही आत्मा। जैसे सरसों के अनेकों दोनों को गुड़ मिश्रित कर लड्डू बनाते हैं। लड्डू एक पिण्ड होने पर भी दानों का आस्तित्त्व अलग-अलग होता है, वैसे ही बाहर से एक दिखने पर भी २६८. जैन आगमों में वनस्पति विज्ञान, पृ. १५-१६ २६९. पनवणा सूत्र १.३६ ११५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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