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________________ पुरुष विशुद्ध चेतन स्वरूप है, परन्तु जब तक यह रजोगुण और तमोगुण से आच्छन्न रहता है तब तक यथार्थ का भूल जाता है । मोक्ष तथा बन्धन रूप परिवर्तन का संबन्ध सूक्ष्म शरीर के साथ है जो पुरुष के साथ संलग्न है । लौकिक जीवात्मा, पुरुष और प्रकृति का मिश्रण है। जब रजोगुण प्रधान होता है तो पुरुष मानवीय जगत् में प्रवेश करता है। वहाँ वह बैचेन होकर दुःख से छुटकारा पाने व मुक्ति के लिए प्रयन्तशील होता है। जब सत्त्वगुण की अधिकता हो जाने पर रक्षापरक ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है, तब प्रकृति अहं को और अधिक जीवन की आपदा से बांधकर नहीं रख पाती । उस अवस्था में मृत्यु के बाद प्रकृति और पुरुष का बन्धन टूट जाता है और आत्मा मुक्त हो जाती है। जीवस्तिकाय के लक्षण : द्रव्य के जितने भी लक्षणों पर द्वितीय अध्याय में विमर्श किया गया है, वे समस्त लक्षण जीव में पाये जाते हैं, अतः जीव भी द्रव्य है। जैन आगमों में 'जीव' शब्द के अनेक पर्यायवाची शब्द उपलब्ध हैं; जीवास्तिकाय, प्राण, भूत, सत्त्व, विज्ञ, चेता, जेता, आत्मा, पुद्गल, मानव, कत्ता, विकर्ता, जगत्, जन्तु, योनि, शरीर और अन्तरात्मा।११६ ।। ___जीव का लक्षण उपयोग है ।१९७ ‘उपयोग' शब्द व्यापक अर्थवाला है। वह 'ज्ञान' और 'दर्शन' दोनों को समाहित करता है । यह उपयोग दो प्रकार का है। कुन्दकुन्दाचार्य ने समयसार में एवं हरिभद्रसूरि ने षड्दर्शन समुच्चय में ११९ जीव का लक्षण 'चेतना' किया है। उत्तराध्ययन में जीव का लक्षण ‘उपयोग' उपलब्ध होता है ।१२०पंचास्तिकाय में कुन्दकुन्दाचार्य ने जीव का लक्षण ‘उपयोग' और 'चेतना' उभय रूप से किया है । १२१ इससे यह प्रतीत होता है कि 'चेतना' और 'उपयोग' दोनों एकार्थक हैं। चेतना जीव की योग्यता एवं उपयोग उसकी क्रियान्विति है। .. ११६. भगवती २०.२.७ - ११७. उपयोगो लक्षणम्-त.सू.२.८, भगवती १३.४.२७., जीवो उवओगमओ- बृ.द.स.२. ११८. स.सा. ४८ ११९. षड्दर्शनसमु. ४९ १२०. उत्तरा. २८.७० १२१. पं. का. १६ प Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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