SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शरीर से अतिरिक्त अन्य कोई जीव नहीं है, जो लोक परलोक जाकर शुभ अशुभ का फल भोगे। जो कुछ है शरीर है, और वह भी बिजली की तरह चंचल है, इसलिए खाओ, पीओ और मस्ती से रहो । ०१ सांख्य दर्शन में आत्माः सांख्य दर्शन में पुरुष और प्रकृति-ये दो मुख्य तत्त्व हैं । वैसे तो सांख्य दर्शन २५ तत्त्व मानता है। इनमें प्रकृति और उसके २३ विकारों का एवं पुरुष का समावेश ___ सांख्य के अनुसार यह चैतन्य ‘शरीर' नहीं है, और न तत्त्वों से उत्पन्न पदार्थ है, यह उनके अंदर अलग-अलग विद्यमान भी नहीं है, अत; उन सबमें एक साथ नहीं हो सकता। यह इन्द्रियों से भिन्न है ।१०३ इन्द्रियाँ दर्शन के साधन अवश्य हैं, दृष्टा नहीं। पुरुष बुद्धि से भी भिन्न है, क्योंकि बुद्धि अचेतन है। हमारे अनुभवों की एकता आत्मा के कारण है। विशुद्ध आत्मा ही पुरुष है जो प्रकृति से भिन्न है।१०४ पुरुष का प्रकाशमय स्वरूप कभी परिवर्तित नहीं होता ।१०५ यह सुषुप्त अवस्था में भी विद्यमान रहता है । १०६ यह पुरुष न किसी का कार्य है और न कारण ।१०७ ___ बुद्धि, मन आदि तत्त्व चैतन्य पुरुष की दासता में है। सांख्य का पुरुष चैतन्यमय है । यह न सुखमय है और न दुःखमय ।१०८ यह आनन्दमय भी नहीं है, क्योंकि आनन्द तो सत्त्वगुण के कारण होता है, जिसका संबन्ध प्रकृति से है जो त्रिगुणात्मिका है। सांख्य का पुरुष गुणरहित है। तथा यह न परिमित है न अणुरूप। यह पुरुष प्रकृति की किसी क्रिया में भाग नहीं लेता अर्थात् यह निष्क्रिय है। " सांख्य के अनुसार भी आत्माएँ अनेक हैं। इनकी इन्द्रियाँ, कर्म, जन्म, मरण सभी भिन्न-भिन्न हैं । १०९ काई स्वर्ग में जाती हैं तो कोई नरक में। १०१. षड्दर्शन समुच्चय टीका ८२. ५६४ १०२. सांख्यप्रवचनसूत्र ५.१२९ १०३. वही २.२९ १०४. सा. प्र. सू. ६.१.२ १०५..सांख्य प्रवचनभाष्य १.७५ १०६. सां. प्र. सू. १.१४८ १०७. सां. प्र. सू. १.६१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy