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________________ भौतिक या अभौतिक का मिश्र रूप कहना चाहिये । इसमें भी भगवान् बुद्ध का मध्यम मार्ग झलकता है। चार्वाक और आत्माः चार्वाक के अनुसार पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश अतिरिक्त आत्मा जैसी कोई वस्तु नहीं है । इन पाँच महाभूतों से आत्मा उत्पन्न होती है और इन्हीं में विलीन हो जाती है।९६ प्राचीन चार्वाक चार महाभूत ही मानते थे, परन्तु अर्वाचीन चार्वाकों ने प्रसिद्ध होने से पाँचवें आकाश को भी महाभूत मान लिया। - आगे वे कहते हैं कि इन पाँच महाभूतों के अतिरिक्त कोई तत्त्व नहीं है। क्रिया, अक्रिया, सुकृत, दुष्कृत, कल्याण, पाप, अच्छा, बुरा, सिद्धि, असिद्धि, नरक या अन्य गति आदि इनसे ही हैं।९७ इन पाँच महाभूतों को न किसी ने बनाया है और न बनवाया है; न तो ये कृत हैं, न कृत्रिम और न ही किसी से अपनी उत्पत्ति की अपेक्षा रखते हैं। ये पाँच महाभूत आदि-अन्त रहित हैं, स्वतन्त्र एवं शाश्वत हैं।९८ पाँच महाभूत ही जीव हैं । ये ही अस्तिकाय हैं। ये ही जीवलोक हैं। संसार का कारण ये ही हैं । तृण का कम्पन तक इनके कारण ही होता हैं। इन पृथ्वी आदि पाँच महाभूतों के शरीर रूप में परिणत होने पर इन्हीं भूतों से अभिन्न ज्ञानस्वरूप चैतन्य उत्पन्न होता है। जैसे गुड़, महुआ आदि मद्य की सामग्री के संयोग से मदशक्ति उत्पन्न हो जाती है, वैसे ही पाँच भूतों के संयोग से शरीर में चैतन्य शक्ति उत्पन्न हो जाती है। जैसे जल में बुलबुले उत्पन्न होते हैं और विलीन हो जाते हैं, वैसे ही पाँच महाभूतों से चैतन्य उत्पन्न होता है और उन्हीं में विलीन हो जाता है ।१०० ९५. संयुक्तनिकाय १.१३५ ९६. सूत्रकृतांग १.१.७,८ ९७. सूत्रकृतांग २.१.६५५ ९८. वही ६६५ ९९. वही ६५७ १००. षड्दर्शन समुच्चय ८४, प्रमेयकमलमार्तण्ड पृ. ११५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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