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इसमें १३७ गाथायें हैं।
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व्यवहार सूत्रों के आधार पर लिखा गया है। 9
इस प्रकार इस प्रकीर्णक में जैन संघ व्यवस्था का चित्रण किया गया
यह प्रकीर्णक महानिशीथ बृहत्कल्प एवं
है।
८. गणिविज्जा (गणिविद्या)
गणिविज्जा - गणित विद्या यह ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें ८२ गाथायें है। इसकी शैली गद्यात्मक है। इसमें नौ विषयों का विवेचन है
१. दिवस
४. करण
७. शकुन
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२. तिथि
५. ग्रहदिवस.
८. लग्न
दिवस से तिथि, तिथि से नक्षत्र, नक्षत्र से करण, करण से ग्रहदिवस, ग्रहदिवस से मुहूर्त, मुहूर्त से शकुन, शकुन से लग्न और लग्न से निमित्त बलवान होता है।
३. नक्षत्र
६. मुहूर्त ६. निमित्त
प्रस्तुत ग्रन्थ में दीक्षा, विहार, अध्ययन, लोच, आचार्य आदि पद के लिये शुभाशुभ तिथियों व नक्षत्रों का वर्णन किया गया है। साथ ही करण, शकुन आदि का भी वर्णन किया गया है।
६. देवेन्द्रस्तव
५६ 'महानिसीहकप्पाओ, ववहाराओ तहेव या
साहुसाहुणिअट्ठाए, गच्छायारं समुद्धिअं । । '
इसमें बत्तीस देवेन्द्रों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है । इसमें ३०७ गाथायें हैं।
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ग्रन्थ के प्रारम्भ में किसी श्रावक ने देवेन्द्रों से पूजित ऋषभ आदि चौवीस तीर्थकरों की स्तुति की है। उसकी पत्नी ने उससे ३२ इन्द्रों के स्वरूप के बारे में जानना चाहा। तब वह सर्वप्रथम भवनवासीदेवों का वर्णन करता है। किन्तु इसके साथ ही आठ प्रकार के व्यंतरदेवों एवं पांच प्रकार के ज्योतिषदेवों की स्थिति, ऋद्धि आदि का भी वर्णन है। वैमानिक, ग्रैवेयक और अनुत्तर विमानवासी देवों की लेश्या, अवगाहना, आहार, श्वासोच्छवास आदि पर भी इसमें प्रकाश डाला है।
अन्त में ईषत्प्राग्भारा अर्थात् सिद्धशिला का वर्णन किया गया है। सिद्धों, जिनेन्द्रदेवों की महिमा का वर्णन किया गया है।
गच्छाचारप्रकीर्णक गाथा १३५ ।
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