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________________ विद्वानों की मान्यता है कि यह दशवैकालिक नियुक्ति का एक भाग है। 10 दशवैकालिकसूत्र के पांचवें अध्ययन का नाम पिण्डैषणा है। संभवतः इस पर लिखी गई नियुक्ति बड़ी हो जाने से इसे स्वतन्त्र ग्रन्थ के रूप में स्वीकार किया गया है। कुछ विद्वान् पिण्डनिर्युक्ति के स्थान पर ओघनिर्युक्ति को मूलसूत्र मानते हैं। ओघनियुक्ति ३५ इसमें मुनि जीवन की सामान्य समाचारी का विस्तृत वर्णन किया गया हैं। इसके सात द्वार अर्थात् विभाग हैं। इसमें ८११ गाथायें हैं, जिनमें कुछ भाष्य की गाथायें भी सम्मिलित हैं। पहले प्रतिलेखना द्वार में प्रतिलेखना, प्रतिलेखन तथा प्रतिलेख्य के विषय में विशद `वर्णन किया गया है। दूसरे पिण्ड द्वार में तीन प्रकार की पिण्डैषणा अर्थात् भिक्षा-चर्या के उद्गम, एषणा, धूम, अंगार आदि दोषों का वर्णन किया गया है । तीसरे उपधिप्रमाण द्वार में उपधि के दो प्रकार तथा जिनकल्पी एवं स्थविरकल्पी आदि की उपधि/उपकरण का वर्णन किया गया है। चौथे अनायतन द्वार में साधु-साध्वी के रहने के अयोग्य स्थान एवं उनमें रहने से होने वाली हानि को प्रकट किया गया है। पांचवें प्रतिसेवना द्वार में मूलगुण तथा उत्तरगुण का विवेचन किया गया है। छट्ठे आलोचना द्वार में आलोचना के स्वरूप एवं फल आदि का विवरण दिया गया है। सांतवें विशुद्धि द्वार में मुनि को गीतार्थ के समक्ष भूल स्वीकार करने की सोदाहरण शिक्षा दी गई है । संक्षेप में यह आगम साधु की जीवन चर्या का सुन्दर विवेचन प्रस्तुत करता है। I छेदसूत्र छेदसूत्रों में मुख्यतः प्रायश्चित्त का निरूपण किया गया है। छेद शब्द का सम्बन्ध चारित्र एवं प्रायश्चित्त दोनों से है । चारित्र के पांच प्रकार हैं(१) सामायिक (२) छेदोपस्थापनीय (३) परिहार विशुद्धि (४) सूक्ष्मसंपराय और Yo (क) 'आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन' खण्ड २ पृष्ठ ४७६ । ४१ (ख) 'जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा' पृष्ठ ४२४ | 'स्थानांगसूत्र' ५/२/१३६ 'उत्तराध्ययनसूत्र' २८/३२, ३३ । Jain Education International - मुनि नगराजजी । - - देवेन्द्रमुनि। - - ('अंगसुत्ताणि' लाडनूं खण्ड १ पृष्ठ ७०१) । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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