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________________ महाचार कथा श्रामण्यपूर्वक संयम में धृति और उसकी साधना; क्षुल्लिकाचार कथा १५ आचार व अनाचार का विवेकः धर्मप्रज्ञप्ति/ २८ / २३ जीवन संयम तथा आत्म संयम का विचार षड़जीवनिका पिंडैषणा १५० गवेषणा, ग्रहणैषणा और भोगैषणा की शुद्धिः श्रमणाचार का विस्तृत विवेचनः वाक्यशुद्धि भाषा विवेक का विश्लेषण आचार प्रणिधि श्रमण के अहिंसक आचारों का वर्णन विनय-समाधि ६२/७ विनय का निरूपण: सभिक्षु . २१ भिक्षु के स्वरूप का वर्णन प्रथम चूलिका/ १८/१ संयम में अस्थिर होने पर पुनः स्थिरीकरण रतिवाथ दूसरी चूलिका/ १६ विविक्त चर्या का उपदेश विविक्तचर्या ____ नवदीक्षित साधुओं की साधना में यह शास्त्र अत्यन्त उपयोगी है। ३. आवश्यकसूत्र आध्यात्मिक साधना हेतु जो अवश्य करणीय है, उसका विधान इस सूत्र में किया गया है। अतः इसका नाम आवश्यकसूत्र रखा गया है। अवश्य करणीय छ: कार्य हैं। उसी के आधार पर आवश्यकसूत्र के भी छः विभाग है- (१) सामायिक (२) चतुर्विंशतिस्तव (चउविसत्थो) (३) वन्दन (४) प्रतिक्रमण (५) कायोत्सर्ग और (६) प्रत्याख्यान। इसमें छ:-आवश्यकों का विधान होने से इसे षडावश्यकसूत्र भी कहते हैं। _प्रथम 'सामायिक' नामक अध्ययन में सावध व्यापार का त्याग कर समभाव की साधना की शिक्षा दी गई है। दूसरे 'चतुर्विंशतिस्तव' अध्ययन में साधना में अवलम्बन भूत चौबीस तीर्थंकरों का स्तवन किया गया है। तीसरे 'वन्दन' अध्ययन में गुरू भगवन्त के प्रति वन्दन का निरूपण किया गया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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