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सम्यक्त्व पराक्रम
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खलुकीय
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अविनीत शिष्य की प्रकृति का चित्रण; .. माोक्षमार्ग गति
चतुर्विध मोक्ष मार्ग का वर्णन जैन साधना के विविध विषयों का स्वरूप
और उनकी साधना का परिणाम तपोमार्गगति
तप के 'प्रकारों का उल्लेख चरणविधि
२१ . पांच प्रकार के चरित्रों का विश्लेषण, अप्रमाद स्थान
प्रमाद के कारण एवं उनका निवारण; कर्म-प्रकृति
कर्मों का स्वरूप एवं प्रकार; . लेश्या अध्ययन
लेश्याओं का स्वरूप एवं प्रकार; ३५. अनगार मार्ग गति २१ मुनि जीवन की चर्या का वर्णन ३६. जीवाजीव विभक्तिः
जीव तथा अजीव के विभाग का निरूपण उत्तराध्ययनसूत्र के ३६ अध्ययनों का विस्तृत विवेचन इसी ग्रन्थ के द्वितीय अध्याय में किया जायेगा । २. दशवैकालिकसूत्र
मूल आगमों में दशवैकालिक का महत्त्वपूर्ण स्थान है। नन्दीसूत्र" पक्खिसूत्र आदि के वर्गीकरण के अनुसार उत्कालिक सूत्रों में इसका प्रथम स्थान है। इसके दस अध्ययन हैं एवं इसकी रचना विकाल में होने से इसका नाम 'दशवैकालिक' रखा गया है। किन्तु नन्दीसूत्र के उत्कालिक सूत्रों में इसकी गणना होने से प्रतीत होता है कि यह सूत्र विकाल में पढ़ा जा सकता है। अतः इसका नाम दशवैकालिक है।
__ प्रस्तुत सूत्र के कर्ता श्रुतकेवली शयम्भव सूरि हैं। उन्होंने इसकी रचना अपने पुत्र मनक के लिये की थी। इसकी रचना वीर संवत ७२ के आसपास चम्पा में हुई। इसके अध्ययन, गाथा एवं विषयवस्तु निम्न हैं -
क्रमाक
अध्ययन
गाथा/सूत्र विषयवस्तु
१.
द्रुमपुष्पिका
धर्म प्रशंसा एवं माधुरी वृत्तिः
३७ 'नंदीसूत्र' ७७ ३८ 'पक्खिसूत्र'
('नवसुत्ताणि' पृष्ठ २६७ )। ('स्वाध्याय' - 'सौम्य-सौरभ' पृष्ठ १६१ )।
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