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अकाममरणीय
ॐ
क्षुल्लक निर्ग्रन्थीय उरभ्रीय
७.
कापिलीय
नमिप्रव्रज्या
द्रुमपत्रक
बहुश्रुतपूजा १२. हरिकेशीय
१३. चित्रसंभूतीय १४. इषुकारीय
१७ / १२
१५. सभिक्षुक १६. ब्रह्मचर्य समाधिस्थान
पापश्रमणीय १८. संजयीय
मरण के प्रकार व उनका स्वरूप, मुनि जीवन का प्रारंभिक आचार; कामभोगों के दुःखद परिणाम का सोदाहरण चित्रण; लोभ की पराकाष्ठा से कपिलमुनि की विरक्ति का चित्रण इन्द्र एवं राजर्षि नमी का संवाद, जीवन की अस्थिरता के वर्णन के साथ अप्रमत्तता की प्रेरणा 'बहुश्रुत' व्यक्ति का महात्म्य, चण्डालकुलोत्पन्न हरिकेशी के दीक्षा ग्रहण के साथ जातिवाद एवं कर्मकाण्ड का खण्डन चित्र व संभूति का संवादः ब्राह्मण व श्रमण संस्कृति के अंतर का वर्णन भिक्षु के स्वरूप का निरूपण: ब्रह्मचर्य के दस समाधिस्थान: पापश्रमण के स्वरूप का निरूपण, संजय राजा को गर्दभालीमुनि द्वारा बोध की प्राप्ति; संसार की असारता तथा संयम की श्रेष्ठता का दिग्दर्शन; अनाथ तथा सनाथ के स्वरूप का विश्लेषण दण्डित चोर को देखकर समुद्रपाल को बोध की प्राप्ति; राजीमति द्वारा रथनेमि को चारित्रिक पतन से बचाकर संयम में स्थिर करना केशी और गौतम का संवाद; पांच समिति तीन गुप्ति का निरूपण; जयघोष व विजयघोष के वार्तालाप में यज्ञीय कर्मकाण्ड की समालोचना; साधु जीवन के दैनिक आचार का विश्लेषण
: १६.
मृगापुत्रीय
२०. महानिग्रंथीय
२१. समुद्रपालीय
२२. रथनेमीय
२३. केशीगौतमीय
प्रवचन माता
यज्ञीय
२६. सामाचारी
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