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इस प्रकार इसमें यदुवंशीय राजाओं के इतिवृत्त का अंकन है। इसमें कथातत्त्वों की अपेक्षा पौराणिक तत्त्वों का प्राधान्य है। साथ ही द्वारिका नगरी एवं . भगवान अरिष्टनेमि के वैशिष्ट्य को अनेक दृष्टियों से प्रतिपादित किया गया है। मूलसूत्र
'मूल' शब्द का क्या तात्पर्य है इसकी विस्तृत विवेचना इसी ग्रन्थ के द्वितीय अध्याय में की गई है। उत्तराध्ययनसूत्र, दशवैकालिकसूत्र, आवश्यकसूत्र.. पिण्डनियुक्ति या ओघनियुक्ति ये आगम मूलसूत्र कहे जाते हैं। जिनका संक्षिप्त परिचय निम्न रूप से दिया जा रहा है - १. उत्तराध्ययनसूत्र
मूलसूत्रों में उत्तराध्ययनसूत्र का प्रथम स्थान है। कालिकश्रुत में भी इसका स्थान सर्वप्रथम मिलता है।
इसमें दो शब्द हैं उत्तर और अध्ययन। नियुक्तिकार के अनुसार ये अध्ययन आचारांग के अध्ययन के पश्चात् अर्थात् उत्तरकाल में पढ़े जाते हैं इसलिये इन्हें उत्तर अध्ययन कहा गया है। श्रुतकेवली आचार्य शय्यंभव के पश्चात् ये अध्ययन दशवैकालिक के अध्ययन के पश्चात् अर्थात् उत्तरकाल में पढ़े जाने लगे। इसलिये ये 'उत्तर अध्ययन' ही बने रहे।
इस सूत्र में ३६ अध्ययन हैं। प्रत्येक अध्ययन के विषय भिन्न भिन्न है उनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है -
क्रमांक अध्ययन
विनयश्रुत परीषह प्रविभक्ति
गाथा/सूत्र विषयवस्तु
विनय का स्वरूप तथा महत्व ४६ /३ साधु जीवन में आने वाले बाईस परीषहों
का वर्णन चार दुर्लभ अंगों का वर्णन जीवन की अनित्यता का बोधः
चतुरंगीय असंस्कृत
३५ (क) 'नंदीसूत्र' ७८
(ख) पक्खिसूत्र' ३६ 'उत्तराध्ययननियुक्ति' गाथा ३
- ('नवसुत्ताणि' लाडनूं पृष्ठ २६७)। - 'स्वाध्याय सौम्य-सौरभ' पृष्ठ १६२ के अनुसार। - नियुक्तिसंग्रह पृष्ठ २६५ ।
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