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________________ हैं। इससे शिक्षा मिलती है कि उत्थान एवं पतन व्यक्ति के स्वयं के कर्मो पर आधारित है। मानव साधना से देव या सिद्ध भी बन सकता है, और विराधना से नारकगामी भी। १०. पुष्पिका पुष्पिका नामक इस तीसरे वर्ग के दस अध्ययनों में चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिका देवी, पूर्णभद्र, मणिभद्र, दत्त, शिव, बल और अनादृष्टि की कथायें हैं। ये सब देव हैं। प्रभु महावीर के समवसरण में उपस्थित होकर इन्होंने विविध प्रकार के नाटक आदि द्वारा प्रभु की भक्ति की थी। उनकी विशिष्ट ऋद्धि देखकर गौतमस्वामी ने भगवान से प्रश्न किया कि इनको यह ऋद्धि कैसे मिली ? तब भगवान् ने बताया कि इन्होंने अपने पूर्व भव में दीक्षा ली थी, किन्तु फिर ये विराधक हो गये इस कारण देवयोनि में उत्पन्न हुए हैं। वहां से च्यवकर ये महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेंगे और संयम स्वीकार कर मोक्ष प्राप्त करेंगे। इस प्रकार तीसरे वर्ग में सम्यक्त्व की आराधना और विराधना के फल का सुन्दर प्रतिपादन है। इसमें पुनर्जन्म और कर्मसिद्धान्त का समर्थन सर्वत्र मुखरित हो रहा है। .११. पुष्पचूला ... चतुर्थ वर्ग का नाम पुष्पचूला है। इसके दस अध्ययन हैं। इनके • क्रमशः निम्न नाम हैं- श्रीदेवी, द्वीदेवी, धृतिदेवी, कीर्तिदेवी, बुद्धिदेवी, लक्ष्मीदेवी, सुरादेवी, रसदेवी और गन्धदेवी। ये सभी पूर्व भव में भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा में संयम अंगीकार करती हैं किन्तु शरीर की आसक्ति के कारण संयम की विराधना कर देवलोक में देवियों के रूप में उत्पन्न होती हैं। देवलोक से आयु पूर्ण कर महाविदेह में जन्म लेंगी और दीक्षा लेकर मोक्षपद प्राप्त करेंगी। १२. वृष्णिदशा (वण्हिदसाओ) पांचवे वर्ग का नाम वृष्णिदशा है। इसमें वृष्णिवंश के बारह राजकुमारों का चरित्र वर्णित है। इन सभी का संयम साधना के द्वारा 'सर्वार्थसिद्धि विमान' में उत्पन्न होने का निरूपण है। उनके नाम इस प्रकार हैं - निषधकुमार, मायनीकुमार, वण्हकुमार, वधकुमार, प्रगतिकुमार, ज्योतिकुमार, दशरथकुमार, दृढ़रथकुमार, महाधनुकुमार, सप्तधनुकुमार, दशधनुकुमार और शतधनुकुमार। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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