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________________ निरयावलिका (निरयावलिया) का दूसरा नाम कल्पिका भी है। इसमें नरक में जाने वाले जीवों का वर्णन किया गया है। २८ इसके दस अध्ययन है; जिनमें क्रमशः श्रेणिक महाराजा के दस पुत्र सुकाल, महाकाल, कण्ह, सुकण्ह, महाकण्ह, वीरकण्ह, रामकण्ह, पिउसेनकण्ह, और महासेनकण्ह का वर्णन है । इसमें महाराजा चेटक एवं कोणिक के युद्ध का भी विवरण दिया गया है। इस युद्ध का उल्लेख 'भगवतीसूत्र' 33 एवं 'आवश्यकचूर्णि 34 में भी मिलता है। श्रावक को भी कभी आत्मरक्षा हेतु युद्ध करना पड़ता है, फिर भी आगम में युद्ध जन्य हिंसा को अहिंसा न मानकर हिंसा ही माना गया है। इसे विरोधजा हिंसा कहा जाता है। अपरिहार्य स्थिति होने पर श्रावक को आत्मरक्षा या आत्मीयजनों की रक्षा के निमित्त ऐसी हिंसा करना पड़ती है। फिर भी इसे कर्मबन्ध का कारण माना गया है। इस आगम में कोणिक का रानी चेलना के गर्भ में आना, चेलना का बीभत्स दोहद, दोहद की पूर्ति, कोणिक द्वारा पिता (श्रेणिक) को जेल में डालना तथा श्रेणिक की मृत्यु आदि का भी विस्तृत वर्णन किया गया है। ९. कल्पावतंसिका कल्प अर्थात् देवलोक, अवतंसिका अर्थात् निवास करने वाले। इस प्रकार देवलोक में निवास करने वाले जीवों का वर्णन होने से इसका नाम कल्पावतंसिका रखा गया है। इसमें धर्म की आराधना करने वाले श्रेणिक के दस पौत्रों की सद्गति का वर्णन है। उनके नाम इस प्रकार हैं- पद्म, महापद्म, सुभद्र, पद्मभद्र, पद्मसेन, पद्मगुल्म, नलिनीगुल्म, आनंद और नंदन । इस प्रकार इसमें जीवन - विकास की प्रक्रिया पर प्रकाश डाला गया है। पहले वर्ग में श्रेणिक के कालकुमार आदि दस पुत्र कषाय के वश होकर नरकगामी बनते हैं, वहीं श्रेणिक के पौत्र तथा उपर्युक्त दस कुमारों के दस पुत्र संयम ग्रहण कर कषायों पर विजय प्राप्त करके देवगति को प्राप्त करते ३३ 'भगवतीसूत्र' ७/६/१७३ - २१० ३४ 'आवश्यकचूर्णि', भाग २ पृष्ठ १७४ Jain Education International - ( 'अंगसुत्ताणि' खण्ड २ पृष्ठ ३०१ - ३०८ ) । (उद्धृत् 'उवंगसुत्ताणि' खण्ड २. भूमिका पृष्ठ ३६ ) । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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