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________________ ६०२ असहिष्णुता वर्तमान युग का अभिशाप है । आबाल वृद्ध सभी में सहनशीलता की कमी है । व्यक्ति के मान-सम्मान को ठेस पहुंचती है । उसके अन्दर बैठा अहं का नाग फुफकार उठता है । आज पारिवारिक सम्बन्धों में टकराव हो रहा है, पारस्परिक प्रेम टूटता जा रहा है । सब अहमेन्द्र बन गये हैं । चारों ओर कलह-क्लेश छा रहा है । उत्तराध्ययनसूत्र का परीषह अध्ययन व्यक्ति को सहिष्णु बनने की विशिष्ट प्रेरणा देता है । उत्तराध्ययनसूत्र के सातवें - उरभ्रीय अध्ययन में उपभोक्तावादी, संस्कृति पर करारा व्यंग्य किया है । इसमें कहा गया है वर्तमान कालीन क्षणिक सुख जो भी' वस्तुतः सुखाभास है उसके पीछे मानव अपने भविष्य अंधकारमय बनाता है । इसके बतीसवें अध्ययन में भौतिक सुख का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करते हुये बताया है कि सुख के सारे साधन, प्राप्ति से पूर्व, प्राप्त साधनों का उपभोग करते समय तथा,. उपभोग के पश्चात् दुःखरूप ही होते है । अर्थात् साधनों के अर्जन, संरक्षण एवं उपयोग तीनों स्थिति में व्यक्ति तनावग्रस्त ही रहता है । ____ व्यक्ति की सविधावादी विचारधारा एवं संग्रहवृत्ति ने समाज की व्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है । एक ओर दो व्यक्ति के लिये पांचं मंजिली इमारत है तो दूसरी ओर दस व्यक्तियों के लिये एक झोपड़ी भी अनुपलब्ध है । इसप्रकार व्यक्ति की तीव्र लालसा से समाज में अमीर-गरीब की खाई बढ़ती जा रही है । उत्तराध्ययनसूत्र के आठवें कापिलीय अध्ययन में लोभ दुष्परिणाम का सुन्दर विवेचन किया गया है । इससे स्पष्ट फलित होता है कि लोभ का कहीं ओर-छोर नहीं होता है । वह स्वयं एवं दूसरे की अशांति का ही कारण बनता है । उत्तराध्ययनसूत्र का अपरिग्रह एवं परिग्रह परिमाण का सिद्धान्त व्यक्ति को अपनी संचय एवं संग्रह वृत्ति पर नियंत्रण रखने की प्रेरणा देता है । इसे स्वीकार करने पर बेरोजगारी एवं गरीबी की समस्या से मुक्ति पाई जा सकती है। __ आज मानव व्यस्तता का मुखौटा पहने हुये वस्तुतः निकम्मा है । इसका कारण वैज्ञानिक यंत्र हैं । इन यंत्रों ने आज मनुष्य का यंत्रीकरण कर दिया है । मशीनों के द्वारा कम समय में अधिक कार्य हो जाता है और सामान्य मानव के पास समय ही समय होता है और वह उस समय को इधर-उधर घूमने-फिरने, टी.वी. सिनेमा, होटल के जरिये निरर्थक व्यतीत करता है । समय का दुरुपयोग भी सामाजिक विकृति का कारण बनता है । कहावत भी है:- 'खाली दिमाग शैतान का घर' । अतः उत्तराध्ययनसूत्र हमें समय का महत्त्व समझने की प्रेरणा देता है । इसमें कहा गया है 'समयं गोयम, मा पमायए' अर्थात एक क्षण भी व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिये । समय का सत्कार्यों में सम्यक नियोजन होना चाहिये । इसमें यह भी कहा गया है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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