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'कालोकालं समायरे'-समय पर समयोचित कार्य करना चाहिये । वस्तुतः समय का नियमन व्यस्तता कम करके व्यवस्था प्रदान करता है ।
अनियन्त्रित कामवासना मानव के संस्कारों को विकृत बनाती है । आज चलचित्रों के दृश्य व्यक्ति की विषय-वासना को उद्दीप्त करते हैं । समाज में व्यभिचार का संकट छा रहा है । उत्तराध्ययनसूत्र का 'ब्रह्मचर्यसमाधि' अध्ययन ब्रह्मचर्य का महत्व प्रतिष्ठित करता है । इसमें वैज्ञानिक रूप से उस वातावरण से दूर रहने की प्रेरणा दी गई है जिनसे विकार-वासना जागृत होने की संभावना हो । यद्यपि उत्तराध्ययनसूत्र के युग में 'दूरदर्शन' (T.V), फिल्म का आविष्कार नहीं हुआ था तथापि उसमें अश्लील दृश्य देखने का निषेध किया गया है । इससे स्वतः टी.वी. का निषेध हो जाता है । टी.वी. हमारी संस्कृति एवं संस्कारों का सर्वनाश करती है । यह समाज के लिये टी.बी. के रोग के समान है । इसमें पारिवारिक मर्यादा मिटती जा रही है ।
___ आज सरकार को आरक्षण व्यवस्था पर विशेष ध्यान देना पड़ रहा है किन्तु आज की आरक्षण-व्यवस्था समाज के लिये अभिशाप बन गई है इसमें योग्यता का अवमूल्यांकन हो रहा है । योग्य व्यक्ति की पद-नियुक्ति नहीं हो रही है और अयोग्य व्यक्ति पदासीन हो रहे हैं । भारतीय संस्कृति में पद-प्रतिष्ठा का आधार व्यक्ति की योग्यता है न कि जाति । उत्तराध्ययनसूत्र के पच्चीसवें अध्ययन में स्पष्टतः कहा गया है:- 'कम्मुणा बम्भणो होई कम्मुणा होई खतियो' – व्यक्ति कर्म से ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र होता है जन्म से नहीं । उत्तराध्ययनसूत्र जातिवाद की समस्या का निराकरण कर एक स्वस्थ समाज की रचना करने का सशक्त संदेश देता है । इसमें हरिकेश मुनि का दृष्टांत है । जो जाति से चाण्डाल होने पर भी मुनि बन गये थे यह छुआछूत की विकृति विचारधारा से मुक्त होने की प्रेरणा देता है।
उत्तराध्ययनसूत्र का समिति-गुप्ति का विवेचन पर्यावरण-संरक्षण के अनेक आयाम प्रस्तुत करता है । इसमें न केवल स्वयं को वरन् समाज को भी प्रदूषण से मुक्त रखने का संदेश समाहित है । नीचे देखकर चलना, स्वयं की एवं दूसरों की सुरक्षा में सहायक बनता है । हित, मित एवं प्रिय वचन भी समाज में मधुर वातावरण का निर्माण करते हैं । इसी प्रकार आहार-पात्र आदि का उचित उपयोग तथा मल-मूत्र का सूखी जगह में विसर्जन प्राकृतिक संतुलन के लिये अति उपयोगी है । साथ ही इसमें मन, वचन एवं शरीर को नियंत्रित करने की प्रेरणा भी की गई है । इसका प्रवृत्ति निवृत्ति मय उपदेश यह है कि व्यक्ति को अनावश्यक मन,वचन, काया की प्रवृत्ति नहीं करनी चाहिये । आवश्यकता होने पर सम्यक् प्रवृत्ति करना चाहिये ।
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