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लोभ, ईर्ष्या-द्वेष, कलह, क्लेश आदि अशुभ भाव होते हैं तो प्राकृतिक व्यवस्था विपरीत रूप से प्रभावित होती है ) । वातावरण दूषित होता है । यह वैज्ञानिक सत्य है जिसे निम्न घटना के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है -
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एक राजा जंगल में शिकार खेलने गया । भयंकर गर्मी थी । उसे तीव्र प्यास लगी । वह एक झोंपड़ी में गया । बुढिया मां ने उसका स्वागत किया, पानी पिलाया और वह अपने खेत में गई । उसने गन्ना तोड़ा रस निकाला और लोटा भरकर राजा को दिया । राजा ने मधुर, स्वादिष्ट रस पिया । तृप्त हो गया । राजा अपने नगर में लौट आया। मंत्री से गन्ने के रस की प्रशंसा की साथ ही बोला:- "मंत्रिवर ! मेरे राज्य में इतना मीठा गन्ना और मुझे ज्ञात ही नहीं ! लगता है तुमने इस खेत पर टेक्स नहीं लगाया है ।" राजा के कहने से खेत पर टैक्स लगा दिया गया ।
कुछ दिनों के पश्चात् राजा पुनः बुढ़िया की झोंपड़ी में गया । बोला :- "मां, एक लौटा गन्ने का रस तो पिलादो । बुढ़िया खेत में गई पर देर से लौटी । लौटा भी पूरा भरा नहीं था । राजा बोला :- "क्या बात ? उस दिन तो तुम जल्दी से पूरा लौटा भर ले आई थी ? और आज.....? बुढिया - "क्या बताऊं बेटा ! हमारा राजा बड़ा दुष्ट है । जबसे उसकी बुरी नज़र गन्ने पर पड़ी उसने टैक्स लगाया तो प्रकृति भी रुष्ट हो गई । पहले एक गन्ने में लोटा भर गया था आज दस गन्ने में भरा ।
ये है बुरी भावना का प्रभाव ! हमारे बुजुर्ग कहते थे नज़र लग गई है । क्या होती है नज़र ? एक प्रकार की भावनाओं का ही असर है । ऐसे एक नहीं सैंकड़ों उदाहरण है ।
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“क्रोध में मां ने बच्चे को दूध पिलाया । दूध जहर बन गया । बच्चा मर गया । जबकि क्षमा, अहिंसा की भावना के प्रभाव से जन्मजात वैरी पशु भी निर्वैर हो जाता है । कहा गया है- 'अहिंसायां प्रतिष्ठायां तन्सन्निधौ वैरस्त्यागः ' जहां अहिंसा की प्रतिष्ठा होती है वहां वैरभावना का विनाश स्वतः हो जाता है । यही कारण है हमारे ऋषि महर्षि के पास शेर - बिल्ली, आदि एक साथ निवास करते थे ।)
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आज समाज में व्याप्त अनुशासनहीनता, निरंकुशता, स्वच्छंदता से हिंसा एवं आतंकवाद को बढ़ावा मिल रहा है । उत्तराध्ययनसूत्र का प्रथम 'विनय' अध्ययन, अनुशासन का नम्रता का प्रतिबोध देता है । इसमें विनय का विवेचन बड़े व्यापक अर्थ में हुआ है । विनय, आचार का प्रतीक भी है । इस अर्थ में औचित्य का पालन विनय है । गुरु-शिष्य, पिता-पुत्र, पति-पत्नी, सास - बहु आदि सभी को अपने 'कर्तव्यों का..... औचित्य का पालन करना चाहिये । इस प्रकार 'विनय' की भावना पर्यावरण संरक्षण में सहायक बनती है ।
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