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2. शाकाहारी हाथी के समान बल किसमें है ?
3. शाकाहारी घोड़ा शक्ति का प्रतीक है । आज भी मशीनों की क्षमता को हार्सपॉवर से मापा जाता है ।
4. शाकाहारी व्यक्ति का मस्तिष्क मांसाहारी की अपेक्षा अधिक विकसित होता
मांसाहार के दुष्परिणाम से पूरा विश्व संतप्त है ।
शारीरिक संरचना की दृष्टि से मानव के शरीर के लिये शाकाहार ही अधिक उपयुक्त है । उसके दांतों और आंतों की संरचना शाकाहार के ही योग्य है । इस प्रकार शाकाहार पर्यावरण संरक्षण का कारण है जबकि मांसाहार पर्यावरण को प्रदूषित करता है ।
आगमों में सात्विक भोजन करने का निर्देश है । जैन आहार व्यवस्था अहिंसा पर आधारित है । श्रमण अपने आहार के लिये किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं होने देते । जैनसाधु' के लिये पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, बीज युक्त वनस्पति तथा त्रसकाय/अन्य जीव-जन्तु की सुरक्षा को ध्यान रखकर ही आहार-ग्रहण करने का विधान है । उत्तराध्ययनसूत्र में स्पष्टतः कहा गया है कि श्रमण को क्षुधा पूर्ति, सेवा-सुश्रूषा, संयम सुरक्षा, प्राणियों की रक्षा, अहिंसा के पालन तथा आत्म चिन्तन के लिये आहार की गवेषणा करनी चाहिये । इसका आशय यह है कि प्राणियों की रक्षा आहार से अधिक महत्त्वपूर्ण है । इसमें यह भी कहा गया है कि भोजन पकाने में पृथ्वी, पानी, अग्नि, धान्य, काष्ठ के आश्रित अनेक जीवों का हनन होता है, अतः मुनि को आहार पकाने एवं पकवाने का निषेध है । इस विधान के पीछे भी प्राकृतिक साधनों की सुरक्षा का उद्देश्य है । इसमें यह भी कहा गया है कि साधु रसों में आसक्त एवं मूर्च्छित होकर आहार न करे ।
दशवैकालिक सूत्र में कंदमूल तथा बिना पके हुये बीज सहित वनस्पत्ति के खाने का निषेध है; साथ ही इसमें मांसाहार को सर्वथा वर्जनीय बताया गया है । उत्तराध्ययनसूत्र में भी अनेक स्थानों पर मांस मदिरा आदि अभक्ष्य पदार्थों के त्याग का उपदेश दिया गया है । स्थानांगसूत्र में मांसाहार को नरक का कारण बताया है । मांसाहारी व्यक्ति में करूणा, दया, सहनशीलता, संवेदनशीलता प्रायः लुप्त सी हो जाती है । उसका पेट मानों कब्रिस्तान बन जाता है ।
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