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एवं सात्विकता की विशेष विवेचना की गई है । उनकी यदि अनुप्रेक्षा की जाये तो पर्यावरण संरक्षण एवं प्राकृतिक संतुलन हेतु अनेक नये तथ्य प्राप्त हो सकते हैं ।
'वतर्मान युग में पर्यावरण-प्रदूषण का एक प्रमुख कारण मांसाहार है । मांसाहार से पशुजगत, वनस्पति जगत, वातावरण, खनिज संपदा आदि के शोषण एवं प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हुई है ।
आज राम, कृष्ण, महावीर की इस भूमि पर हिंसा का ताण्डव देखकर हृदय द्रवित हो उठता है । विदेशी मुद्रा को प्राप्त करने हेतु सरकार मानव को मुर्दा (संवेदनशून्य) बनाने का कार्य कर रही हैं । विदेशियों की प्लेटों में भारत का पशुधन परोसा जा रहा है । भारत में आये दिन कत्लखानों की संख्या बढ़ती जा रही है ।
आज पशुधन तो नष्ट हो ही रहा है साथ ही कत्लखानों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थ पर्यावरण को विषाक्त / प्रदूषित बना रहे हैं ।
यदि समूचे अहिंसक समाज ने मांसाहार / कत्लखानों का विरोध नहीं किया तो यान्त्रिक कत्लखानों की योजना में हमारे पशुधन का सर्वनाश हो जायेगा । आने वाली पीढ़ी के लिये पशुओं के परिचय का साधन मात्र नाम एवं चित्र ही रह जायेगा ।
(मांसाहार मानव जाति पर कलंक है । वैज्ञानिक दृष्टि से यह महारोगों का जन्मदाता है । आर्थिक दृष्टि से महंगा है । प्राकृतिक दृष्टि से पर्यावरण को प्रदूषित करता है । धार्मिक दृष्टि से दुर्गति प्रदाता है । शारीरिक दृष्टि से दुष्पाच्य है ।)
कई मांसाहारी लोग इस भ्रम में है कि मांसाहार में पौष्टिक तत्व अधिक है किन्तु यह सत्य नहीं है । आज के वैज्ञानिक आंकडों ने यह सिद्ध कर दिया है कि शाक, सब्जी, फल, धान्य आदि में प्रोटीन, केल्शियम, विटामिन, आदि तत्वों की मात्रा समुचित है । शाकाहार संबंधी साहित्य में इनकी तुलनात्मक तालिका भी उपलब्ध होती है । शाकाहार पूर्ण-रूपेण संतुलित आहार है । इसमें वे सभी तत्त्व उपलब्ध होते हैं जिनकी हमारे शरीर को आवश्यकता I
1. मांसाहारी लोग भी अधिकतर शाकाहारी पशु का ही आहार करते हैं । कुत्ते, शेर आदि का मांस कौन खाता है ?
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