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रही है । पैकिंग, पाऊच तथा किराणा में प्रयुक्त प्लास्टिक अत्यन्त घातक सिद्ध हो रहा है । जलाया गया प्लास्टिक वातावरण को विषाक्त बनाता है । जमीन में गाड़ा गया प्लास्टिक पृथ्वी की उर्वरा शक्ति को नष्ट करता है । चिकित्सकों की मान्यता है कि प्लास्टिक केन्सर रोग का कारण होता है ।
पूर्वोक्त चर्चा से स्पष्ट होता है कि प्लास्टिक का प्रयोग हिंसात्मक है । इसका उत्पादन, प्रयोग एवं विनाश सभी हिंसाजनक है । जो जैनदर्शन के अहिंसा सिद्धान्त के प्रतिकूल है । अतः जैनदर्शन की अहिंसा प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्ति का श्रेष्ठ उपाय है ।
मानवीय आहार और पर्यावरण
जीवन की सुरक्षा के लिए वायु एवं जल के पश्चात् सर्वाधिक आवश्यक तत्त्व आहार है। मानव का आहार कैसा हो ? एवं उसका उद्देश्य क्या है, इस बात पर ध्यान देना अत्यावश्यक है ।
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आहार हमारे, आचार विचार एवं व्यवहार को प्रभावित करता है कहा जाता है। जैसा खाये अन्न, वैसा होय मन' अतः भोजन का लक्ष्य मात्र उदरपूर्ति या क्षुधानिवृत्ति तक ही सीमित नहीं है, वरन् चारित्रिक, नैतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास भी है। जो आहार विषय वासना को उत्तेजित करे, मनोभावों को प्रदूषित करे, पर्यावरण को असंतुलित करे वह उचित एवं संतुलित नहीं हो सकता । भोजन का उद्देश्य हमारे शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक विकास में तथा दया, दान, स्नेह, करुणा, अहिंसा, शांति आदि के संवर्धन में सहायक संतुलित अहिंसक पदार्थों का सेवन करना है । जैनागम उत्तराध्ययनसूत्र में आहार ग्रहण के छः कारण प्रतिपादित किये हैं । वे कारण प्राकृतिक संतुलन बनाने में अहम् भूमिका निभाते हैं ।
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जैन आगम जीवन व्यवहार के आधारभूत ग्रंथ हैं । इन ग्रंथों में धर्म, दर्शनं एवं योग साधना के साथ जीवन व्यवहार, रहन-सहन एवं खानपान आदि के नियमों का भी विवेचन किया गया है । जैनधर्म में विचार की सुरक्षा के साथ आहार की शुद्धता पर भी विशेष प्रकाश डाला गया है । आचारांगसूत्र, उत्तराध्ययनसूत्र, दशवैकालिकसूत्र आदि ग्रंथों में साधु की भिक्षाचर्या के प्रसंग में आहार की शुद्धता
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