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________________ स्पष्ट करते हुए संवर निर्जरा एवं मोक्ष का वर्णन किया गया है। शेष पदों में भाषा, लेश्या, समाधि एवं लोकस्वरूप का प्रतिपादन है। ___ प्रज्ञापना के रचयिता श्यामाचार्य ने इसे दृष्टिवाद से उघृत माना है, आचार्य मलयगिरि इसे 'समवायांग' का तथा आचार्य तुलसी इसे भगवती का उपांग मानते हैं। ५. जम्बूद्धीपप्रज्ञप्ति प्रस्तुत आगम का नाम जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति (जम्बूद्दीवपण्णत्ति) है। प्रज्ञप्ति का अर्थ है निरूपण । इसमें जम्बूद्वीप के स्वरूप का निरूपण है, इसलिए इसका नाम 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति है। __ प्रस्तुत आगम सात अध्यायों में विभक्त है। इन अध्यायों को वक्षस्कार कहा गया है। उनके विषय हैं १) जम्बूद्वीप। २) कालचक्र और ऋषभ चरित्र। ३) भरत चरित्र। ४) जम्बूद्वीप का विस्तृत वर्णन। ५) तीर्थकरों का जन्माभिषेक। ६) जम्बूद्वीप की भौगोलिक स्थिति। ७) ज्योतिष चक्र। इसका मुख्य प्रतिपाद्य तो जम्बूद्वीप का वर्णन है किन्तु इसके अवान्तर विषयों में भगवान ऋषभ, कुलकर, भरत चक्रवर्ती, कालचक्र, सौरमण्डल आदि अनेक विषयों का भी उल्लेख है। साथ ही इसमें चक्रवर्ती के चौदह रत्नों और नौ निधियों का भी प्रसंगानुकूल वर्णन हुआ है। - इसमें कालचक्र का सूक्ष्म एवं गंभीर वर्णन करते हुए वर्तमान अवसर्पिणी के छठे आरे का अत्यंत रोमांचक वर्णन है। प्रलय संबंधी भविष्यवाणियां इसमें उपलब्ध हैं। जिससे अणुयुध्द की विभीषिका का एक प्रतिबिम्ब हमारे सामने आ जाता है। २४ 'प्रज्ञापना' गाथा ३। २५ 'प्रजापना' टीका पत्र १ - ('उवंगसुत्ताणि', लाडनूं खण्ड २. पृष्ठ ३)। - (उद्धृत - 'जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा ' पृष्ठ २२८.)।। २६ ‘उवंगसुत्ताणि' खण्ड २. भूमिका पृष्ठ ३० - आचार्य तुलसी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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