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________________ ३. जीवाजीवाभिगम प्रस्तुत आगम का नाम 'जीवाजीवाभिगम' है। इसमें भगवान महावीर और गौतम गणधर के प्रश्नोत्तरों के माध्यम से जीव और अजीव इन दो मूलभूत तत्त्वों के स्वरूप का प्रतिपादन है। अतः इसका नाम जीवाजीवाभिगम ( जीव + अजीव + अभिगम अर्थात् ज्ञान) अर्थात् जीव और अजीव का ज्ञान है। प्रस्तुत आगम में एक अध्ययन नौ प्रतिपत्ति - २७२ गद्यसूत्र और ८१ गाथायें हैं। २४ यद्यपि इस आगम का प्रतिपाद्य जीव एवं अजीव का स्वरूप है तथापि इसमें अवान्तर विषय भी विपुल मात्रा में उपलब्ध होते हैं। जैसे सागरों, द्वीपों, सोलह प्रकार के रत्नों, विविध अस्त्र-शस्त्रों, विविध प्रकार के यानों, कल्पवृक्ष, पात्रों, भवनों, वस्त्रों तथा ग्राम नगर, राजा आदि की चर्चा की गई है। इसमें त्यौहारों और उत्सवों का भी वर्णन है। पुष्करिणी, कदलीघर, प्रसाधनघर आदि का भी इसमें सरस एवं साहित्यिक वर्णन है। इस प्रकार इसमें भारतीय समाज और संस्कृति के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध होती है। स्थापत्य कला की दृष्टि से पद्मवरवेदिका और विजयद्वार का वर्णन बहुत महत्त्वपूर्ण है। फिर भी इसका मूल प्रतिपाद्य तो जीव और अजीव तत्त्व ही है। इसमें जीवों की विभिन्न स्थितियों का तथा उनके अल्पबहुत्व आदि का विस्तृत विवेचन है । ४. प्रज्ञापना चतुर्थ उपांग का नाम प्रज्ञापना (पण्णवणा) है। जिसका अर्थ है प्रकर्ष रूप से ज्ञापन (प्रतिपादन) अथवा प्रकर्ष रूप से ज्ञान का आस्वादन है। प्रस्तुत सूत्र के रचयिता श्यामाचार्य ने इसका सामान्य नाम 'अध्ययन' एवं विशेष नाम प्रज्ञापना दिया है। 23 जैसे अंगों में भगवतीसूत्र सबसे बड़ा है, वैसे ही उपांगो में प्रज्ञापना सबसे बड़ा है। इसमें छत्तीस पद अर्थात् अध्याय हैं। यह भी प्रश्नोत्तर शैली में है। इसमें जीव, अजीव, आश्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष का प्ररूपण है। पहले तीसरे, पांचवे, दसवें एवं तेरहवें पद में जीव और अजीव की विवेचना है । सोलहवें एवं बावीसवें पद में मन, वचन और काया योग तथा आश्रव का एवं तेवीसवें पद में बन्ध का प्रतिपादन है। छत्तीसवें पद में केवलीसमुद्घात को २३ 'प्रज्ञापना' गाथा २ व ३ । Jain Education International ( ' उवंगसुत्ताणि', लाडनूं खण्ड २, पृष्ठ ३ ) । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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