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________________ सिध्दसेनगणि, एवं मुनिचन्द्रसूरि द्वारा क्रमशः उल्लिखित प्रसेनकीय तथा राजप्रसेनजित के आधार पर पं. बेचरदास दोशी ने इसका नाम रायपसेणइय रखा है।' प्रस्तुत आगम दो भागों में विभक्त है प्रथम विभाग में भगवान महावीर के समवसरण में सूर्याभदेव के उपस्थित होने पर गौतमस्वामी उसके विषय में प्रभु से प्रश्न पूछते हैं। उत्तर में भगवान सूर्याभदेव के पूर्वभव को बतलाते हुए कहते हैं कि यह पूर्व भव में राजा परदेशी था; इसका उल्लेख है। द्वितीय विभाग में राजा परदेशी के वृत्तान्त का उल्लेख किया गया है। राजा प्रदेशी अनात्मवादी, अपुनर्जन्मवादी तथा जड़वादी दृष्टिकोण को लेकर केशीश्रमण के समक्ष अनेक प्रश्न प्रस्तुत करता है। श्रमण केशीकुमार न्याय एवं युक्तिपूर्वक उसका समाधान देते हैं। तब राजा श्रावक धर्म को अंगीकार करता है अन्त में पत्नी के द्वारा भोजन में विष खिला देने पर समभाव पूर्वक आमरण अनशन स्वीकार करता है। आत्मवाद एवं जड़वाद की प्राचीन धारणा को जानने के लिए यह आगम अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। - इस आगम के नाम का सीधा सम्बन्ध तो राजा प्रसेनजित् से है, पर वर्तमान में उपलब्ध कथानक को राजा प्रसेनजित् से जोड़ना तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता । यह सारा कथाक्रम कैसे परिवर्तित हुआ यह विद्वानों के लिए अन्वेषणीय है। यह. आगम सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है, इसमें बत्तीस प्रकार के नाटकों तथा सप्त स्वरों का उल्लेख किया गया है। लेखनकला, शिल्पकला के साथ साम, दाम एवं दण्ड आदि तीन नीतियों का भी निरूपण किया गया है। इससे भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा सम्बन्धी अनेक जानकारियां प्राप्त होती हैं। ... इस आगम का यही कथानक बौद्ध 'त्रिपिटक' में दीर्घनिकाय के 'पयासीसुत्त' में उपलब्ध होता है। २१'जैन साहित्य का वृहद् इतिहास' भाग-२ पृष्ठ २७ । २२ देखिये - दीघनिकाय, पयासीसुत्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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