________________
(३) विनयवादी
जो विनय से मुक्ति मानते हैं, वे विनयवादी हैं। ये विनय को ही श्रेष्ठ मानते हैं। विनय का अर्थ गर्वरहित- विनम्रवृत्ति किया जाता है। विनयवादी की मान्यता है – देव, दानव, राजा, तपस्वी, हाथी, घोड़ा, हिरण गाय, भैंस, श्रृंगाल आदि
-
को नमस्कार करने से क्लेश का नाश होता है । अतः विनय से ही कल्याण होता है। अन्यथा नहीं | 34
५७१
उत्तराध्ययन सूत्र की टीका में इसके ३२ भेदों की सूचना मिलती है, 35 जिसका स्पष्ट उल्लेख प्रवचनसारोद्धार के अनुसार निम्न है.
-
देव, राजा, मुनि, स्वजन, वृद्ध, दयनीयजीव (भिखारी, अपंग आदि), माता तथा पिता इन आठ का मन, वचन, काया एवं दान द्वारा विनय करने से मोक्ष या स्वर्ग की प्राप्ति होती है । विनयवादियों की इस मान्यता के आधार पर सुर आदि आठ के साथ मन, वंचन, काया और दान इन चार अपेक्षाओं का गुणा करने पर ८x ४ = ३२ भेद होते हैं, जिसे निम्न रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है
(१) सुराणां विनयं मनसा कर्तव्यं (२) सुराणां विनयं वचसा कर्तव्यं
(३) सुराणां विनयं कायसा कर्तव्यं
(४) सुराणां विनयं दानेन कर्तव्यं
इसी प्रकार राजा आदि के भी उपर्युक्त चार विकल्प होंगे।
विनयवाद के सन्दर्भ में आचार्य महाप्रज्ञ ने एक महत्त्वपूर्ण तथ्य प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार यहां विनय का अर्थ 'आचार' होना चाहिये । ज्ञानवादी जैसे ज्ञान के द्वारा ही सिद्धि मानते थे; वैसे ही आचारवादी (विनयवादी) आचार पर ही बल देते थे। उनका घोष था - 'आचारः प्रथमो धर्म । आचार्यश्री के अनुसारः प्राचीन साहित्य में 'विनय' शब्द आचार के रूप में व्यवहृत होता था। इसे पुष्ट कर हुए ज्ञाताधर्मकथांग एवं बौद्धग्रन्थ विनयपिटक का उल्लेख किया है। वैसे यह बात उत्तराध्ययनसूत्र से भी पुष्ट होती है। उत्तराध्ययनसूत्र का प्रथम विनय अध्ययन
३४ उत्तराध्ययनसूत्र टीका - पत्र ४४४
३५ उत्तराध्ययनसूत्र टीका पत्र ५०६
३६ प्रवचनसारोखार पृष्ठ ५२७
-
Jain Education International
- (शान्त्याचार्य)।
(लक्ष्मीवल्लभगणि) । (साध्वी हेमप्रभा श्री)
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org