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प्रवचनसारोद्धार में अक्रियावादी के छः भेदों का उल्लेख किया गया है, जिसमें कालवादी आदि पूर्ववत् पांच के अतिरिक्त छट्टा यदृच्छावादी है। 28
क्रियावादी की मान्यता को स्पष्ट करते हुए गुरूवर्या श्री हेमप्रभाश्री म. सा. ने लिखा है कि पुण्यबन्ध, पापबन्ध रूप क्रियाओं को नहीं मानने वाले अक्रियावादी हैं। उनके अनुसार जगत के सभी पदार्थ क्षणिक हैं और क्षणिक पदार्थों में क्रिया घट नहीं सकती, क्योंकि वे तो उत्पन्न होते ही दूसरे क्षण में नष्ट हो जाते हैं। क्रिया उन्हीं पदार्थों में हो सकती है जो उत्पत्ति के पश्चात् कुछ क्षण ठहरते हैं। ये आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते हैं। 29
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उत्तराध्ययनसूत्र की लक्ष्मीवल्लभगणिकृत टीका तथा सूत्रकृतांगनिर्युक्ति में इसके चौरासी भेद का उल्लेख आता है जो निम्न है -
जीव, अजीव, आश्रव, संवर, बन्ध, निर्जरा एवं मोक्ष इन सात तत्त्वों के स्व, पर विकल्प की अपेक्षा से ७x २ = १४ भेद होते हैं। पुनश्च इन चौदह के काल स्वभाव, नियति, ईश्वर, आत्मा एवं यदृच्छा इन छ: की अपेक्षा से १४४६ =८४ (चौरासी) भेद होते हैं।
अक्रियावादी पुण्य एवं पाप को नहीं मानते हैं। अतः इनकी अपेक्षा से सात ही तत्त्व होते हैं। ये नित्य एवं अनित्य विकल्प भी नहीं मानते हैं, क्योंकि नित्य एवं अनित्य धर्म रूप हैं और धर्म को मानने पर उसके आधार रूप धर्मी को मानना ही पड़ेगा। यह नियम है कि धर्म धर्मी के बिना नहीं रह सकता । अतः अक्रियावादी को नित्य - अनित्य रूप धर्म मानने पर आत्मा रूपी धर्मी को भी मानना पड़ेगा, जो (आत्म- अस्तित्व) उसे इष्ट नहीं है। अक्रियावादी के भेदों को स्पष्ट करते हुए प्रवचनसारोद्धार में गुरूवर्याश्री ने निम्न तालिका प्रस्तुत की है -
२.
अस्ति जीव परतः कालतः
१. अस्ति जीव स्वतः कालतः ३. अस्ति जीव स्वतः यदृच्छायाः
४.
५. अस्ति जीव स्वतः स्वभावतः ७. अस्ति जीव स्वतः नियतेः
६. अस्ति जीव स्वतः ईश्वरात्
२८ प्रवचनसारोद्धार - ५२४
२६ प्रवचनसारोवार ५२३
३० (क) उत्तराध्ययनसूत्र टीका - पत्र - ५०६
(ख) सूत्रकृतांगनिर्युक्ति - ११६
३१ प्रवचनसारोद्धार, पृष्ठ ५२३
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अस्ति जीव परतः यदृच्छायाः
६. अस्ति जीव परतः स्वभावतः
८.
अस्ति जीव परतः नियतेः
१०. अस्ति जीव परतः ईश्वरात्
- ( साध्वी हेमप्रभा श्री ।
-
- ( साध्वी हेमप्रभा श्री) ।
(लक्ष्मीवल्लभगणि);
-
• (निर्युक्तिसंग्रह, पृष्ठ ४६६ )
( साध्वी हेमप्रभा श्रीं) ।
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