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________________ ५६८ ३. अस्ति जीव अनित्यः स्वतः कालतः ४. अस्ति जीव अनित्यः परतः कालतः ५. अस्ति जीव नित्यः स्वतः स्वभावतः ६. अस्ति जीव नित्यः परतः स्वभावतः ७. अस्ति जीव अनित्यः स्वतः स्वभावतः ८. अस्ति जीव अनित्यः परतः स्वभावतः ६. अस्ति जीव नित्यः स्वतः नियतेः १०. अस्ति जीव नित्यः परतः नियतेः११. अस्ति जीवः अनित्य स्वतः नियतेः .. १२. अस्ति जीव अनित्य परतः नियतेः १३. अस्ति जीव नित्य स्वतः ईश्वरात् १४. अस्ति जीव नित्य परतः ईश्वरात् ... १५. अस्ति जीव अनित्य स्वतः ईश्वरात् १६. अस्ति जीव अनित्य परतः ईश्वरात् १७. अस्ति जीव नित्य स्वतः आत्मनः १८. अस्ति जीव नित्य परतः आत्मनः १६. अस्ति जीव अनित्य स्वतः आत्मनः २०. अस्ति जीव अनित्य परतः आत्मनः (२) अक्रियावाद शान्त्याचार्य ने अक्रिया का अर्थ नास्तिवाद और मिथ्यानुष्ठान किया है।' नियुक्तिकार ने सूत्रकृतांगनियुक्ति में नास्ति के आधार पर अक्रियावाद की व्याख्या की है। दशाश्रुतस्कंध में इसके निम्न चार सिद्धान्त प्रतिपादित किये हैं - (9) आत्मा का अस्वीकार (२) आत्मा के कर्तव्य का अस्वीकार (३) कर्म का अस्वीकार और (४) पुनर्जन्म का अस्वीकार। इसमें अक्रियावादी को नास्तिकवादी, नास्तिकप्रज्ञ एवं नास्तिक दृष्टि कहा गया है। स्थानांगसूत्र में अक्रियावादी के आठ प्रकार बतलाए गये है - (१) एकवादी (२) अनेकवादी (३) मितवादी (४) निमित्तवादी (५) सतवादी (६) समुच्छेदवादी . (७) नित्यवादी (८) नास्तिक परलोकवादी २४ उत्तराध्ययनसूत्र टीका-पत्र - ४४७ २५ सूत्रकृतांगनियुक्ति - ११८ २६ दशाश्रुतस्कन्ध - ६/७ २७ स्थानांग - ८/२२ - (शान्त्याचार्य) - (नियुक्तिसंग्रह, पृष्ठ ४६६)। - (नवसुत्ताणि, लाडनूं, पृष्ठ ४४५) । - (अंगसुत्ताणि, लाडनूं, खंड १, पृष्ठ ७६२) । For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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