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________________ ५६७ उत्तराध्ययनसूत्र के टीकाकार लक्ष्मीवल्लभगणि ने क्रियावाद के १५० भेदों का निरूपण किया है। किन्तु उन्होंने ये भेद किस प्रकार से होते हैं इसका उल्लेख नहीं किया है। सूत्रकृतांगचूर्णि एवं प्रवचनसारोद्धार में इनका विस्तृत विवेचन किया हैं जो निम्न हैं2 (१) जीव (२) अजीव (३) पुण्य (४) पाप (५) आश्रव (६) संवर (७) निर्जरा .(८) बन्ध और (६) मोक्ष । ये नवतत्त्व स्वतः और परतः इन दोनों अपेक्षाओं से जाने जाते हैं। वस्तु का ज्ञान स्वस्वरूप एवं परस्वरूप दोनों ही प्रकार से होता है। जैसे- आत्मा का ज्ञान चेतना लक्षण (स्वस्वरूप) से होता है वैसे ही स्तम्भ, कुम्भ आदि विपरीत लक्षण वाले पदार्थ से उसका विभेद करने पर भी होता है। जैसे दीर्घ को देखकर हृस्व का ज्ञान होता है, उसी प्रकार विपरीत लक्षण वाली वस्तु को देखकर उससे भिन्न लक्षण वाली वस्तु का ज्ञान होता है। ये नौ तत्त्व अपेक्षाभेद से नित्य और अनित्य दोनों हैं। इस प्रकार एक जीव तत्त्व के स्व, पर, नित्य तथा अनित्य की अपेक्षा से चार भेद हुए। पुनश्च इन चारों के काल, स्वभाव, नियति, ईश्वर तथा आत्मा की अपेक्षा से पांच भेद हुए है। इस प्रकार ४ x ५=२० ऐसे एक जीवतत्त्व के २० भेद हुए। इसी प्रकार अजीव आदि तत्त्व के २०-२० भेद होने पर २० x ६ = १८० भेद क्रियावाद के हुए। संक्षेप में इनके भेद इस प्रकार है: जीव, अजीव आदि उपर्युक्त नवतत्त्व हैं। स्व, पर की अपेक्षा से इन नौ के अठारह भेद हुए। इन अठारह भेदों के नित्य एवं अनित्य की अपेक्षा से छत्तीस भेद हुए और इन छत्तीस के काल, नियति, स्वभाव, ईश्वर एवं आत्मा की अपेक्षा से ३६ x ५ = १५० भेद हुए। क्रियावाद के इन भेदों को किस प्रकार सम्यक रूप से समझा जा सकता है इसे गुरूवर्या हेमप्रभाश्री जी म. सा. ने प्रवचनसारोद्धार में निम्न तालिका द्वारा प्रस्तुत किया है१. अस्ति जीव नित्य स्वतः कालतः २. अस्ति जीव नित्यः परतः कालतः - (लक्ष्मीवल्लभगणि) से उत्तराध्ययनसूत्र टीका पत्र - ५०६ २२ (क) सूत्रकृतांगचूर्णि - पत्र २५१ । (ख) प्रवचनसारोद्धार, पृष्ठ -५२३ २३ प्रवचनसारोद्धार - पृष्ठ ५२३ -(साध्वी हेमप्रभा श्री) - (साध्वी हेमप्रभा श्री) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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