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________________ ५६४ उल्लेख मिलते हैं, किन्तु उनमें किसी भी दार्शनिक सम्प्रदाय का नाम नहीं मिलता है। ऐसी ही कुछ स्थिति उत्तराध्ययनसूत्र की भी है। धार्मिक परम्परा के सन्दर्भ में भी हम स्पष्ट रूप से यह देखते हैं कि उत्तराध्ययनसूत्र में जैन, बौद्ध या हिन्दू जैसे किसी धर्म का उल्लेख नहीं हुआ। फिर भी इसमें उपलब्ध निर्ग्रन्थ, जिन, बुद्ध आदि शब्द यह सूचित करते हैं कि इन परम्पराओं के मूल तत्त्व उस समय उपस्थित थे। वेदों, वैदिक कर्मकाण्डों एवं वैदिक दृष्टिकोण का उल्लेख इसमें अनेक स्थलों पर उपलब्ध होता है। इसके बारहवें एवं पच्चीसवें अध्ययन में वैदिककर्मकाण्ड अर्थात् यज्ञ-याग का विस्तृत उल्लेख मिलता है। इसी प्रकार चौदहवें अध्ययन के अन्दर पुत्र के बिना गति नही होती है ऐसी वैदिक मान्यता का भी उल्लेख है।' ___ उत्तराध्ययनसूत्र में ओंकार का जाप करने वाली परम्परा का भी उल्लेख मिलता है। वहां यह भी कहा गया है कि ओंकार का जाप करने मात्र से कोई ब्राह्मण नहीं हो जाता है। इसी प्रकार तापस, मृग-चर्मधारी एवं वनवासियों के रूप में तापस परम्परा के भी उल्लेख उपलब्ध होते हैं। फिर भी उत्तराध्ययनसूत्र किसी भी धर्मपरम्परा विशेष का नाम लेकर उल्लेख नहीं करता है। उसमें श्रमणपरम्परा के अंतर्गत निर्ग्रन्थ के रूप में जैनपरम्परा का उल्लेख हुआ है। यद्यपि उत्तराध्ययनसूत्र में बुद्ध, जिन आदि शब्द अनेक बार प्रयुक्त हुए हैं, फिर भी यह आश्चर्यजनक बात है कि बौद्ध-दर्शन का इसमें स्पष्टतः कोई उल्लेख नहीं है। इससे यह सिद्ध होता है कि उत्तराध्ययनसूत्र के काल तक यद्यपि श्रमणों और वैदिकों की विभिन्न परम्पराएं अस्तित्व में आ गई थी फिर भी श्रमण, निर्ग्रन्थ, तापस आदि नाम निर्देशों के अतिरिक्त इसमें विस्तार से विभिन्न श्रमण धाराओं के बारे में कोई सूचना नहीं मिलती है। दान, यज्ञ और उपवास आदि की कठोर तप साधनाएं उस युग में प्रचलित थी, ऐसे निर्देश इसमें अवश्य प्राप्त होते हैं। साथ ही अन्न आदि के दान के साथ-साथ गोदान की परम्परा भी उस युग में ५ (क) 'निग्रंथ' उत्तराध्ययनसूत्र - १६/३-१२, २१/२; २६/१, ३३; (ख) 'जिन' उत्तराध्ययनसूत्र - २/४५; १०/३१; १६/१७; १८/४३, २०/५०,५५, २१/१२ । (ग) 'बुद्ध' उत्तराध्ययनसूत्र - १/८, १७, २७,२,४०,४२, ६/३; १०/३६, ३७; ११/३; १४/५१; १८/२१; २४,३२; २३/३,७; २५/३२, ३५/१; ३६/३६८ । ६ उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन - १२,१४,२५ । ७ उत्तराध्ययनसूत्र - १४/६ । ८ उत्तराध्ययनसूत्र - २५/२६ ।। ६ उत्तराध्ययनसूत्र -५/२१ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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