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यहां प्रसंगवश शिक्षा दी गई है कि धनसम्पत्ति व्यक्ति को दुःख और पीड़ा से मुक्त नहीं कर सकती।
उत्तराध्ययनसूत्र के चौदहवें अध्ययन में रानी कमलावती इषुकार राजा को यही कहकर प्रतिबोध देती है कि सम्पूर्ण जगत का धन भी यदि प्राप्त हो जाय तो भी वह उनकी रक्षा करने में अर्थात् मृत्यु के मुख से बचाने में समर्थ नहीं होगा।"
इस प्रकार धन से सुख और शान्ति प्राप्त होती है अथवा धन व्यक्ति को दुःख या पीड़ा से बचा सकता है, यह दृष्टिकोण उत्तराध्ययनसूत्र को मान्य नहीं
१५.४ अर्थ की उपयोगिता कहां तक ?
____ उत्तराध्ययनसूत्र अर्थ उपार्जन का निषेध नहीं करता है। इसमें गृहस्थधर्म का उल्लेख आता है और यह बात निर्विवाद सत्य है कि गृहस्थ का जीवन बिना अर्थ के नहीं चल सकता है। अतः उत्तराध्ययनसूत्र यह बताता है कि अर्थ का उपार्जन कैसे किया जाना चाहिये। इसमें कहा गया है कि जो मनुष्य अज्ञान के कारण पाप प्रवृत्तियों से धन का उपार्जन करते हैं, वे वासना और वैर (कर्म) से बंधे हुए, अन्त में मरने के बाद नरक में जाते हैं।"
इस प्रकार इसमें अन्याय एवं अनीति से उपार्जित धन को अनुचित माना है।
___ आधुनिक अर्थशास्त्र में अर्थ के उपार्जन के सम्बन्ध में मुख्यतः तीन अंगों पर विचार किया जाता है - (१) उत्पादन (२) वितरण एवं (३) उपभोग।
उत्तराध्ययनसूत्र में उपर्युक्त तीन अंगों के सम्बन्ध में कोई सूचना स्पष्टतः प्राप्त नहीं होती है। फिर भी इस में वर्णित कुछ सन्दर्भ ऐसे हैं, जिनके द्वारा इनके सम्बन्ध में प्रकाश डाला जा सकता है।
* उत्तरामवनसूत्र - १४/३९ | 6 उत्तराव्यवनसूत्र - ४/२।
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