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अर्थशास्त्र विषयक ग्रन्थ लिखे जाते थे। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति से यह सूचित होता है कि भरत का सेनापति सुषेण अर्थशास्त्र और नीतिशास्त्र में चतुर था। .
जैनपरम्परा में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव को अर्थव्यवस्था का संस्थापक माना गया है। आदिपुराण में कहा गया है कि ऋषभदेव ने अपने पुत्र भरत चक्रवर्ती के लिए अर्थशास्त्र का निर्माण किया था। नन्दीसूत्र में कहा गया है कि विनय से प्राप्त बुद्धि सम्पन्न मनुष्य अर्थशास्त्र तथा अन्य लौकिक शास्त्रों में दक्ष हो जाते हैं।
पूर्वोक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त आगमिक व्याख्या साहित्य में भी अर्थ सम्बन्धी विस्तृत उल्लेख प्राप्त होते हैं, किन्तु उन सब की चर्चा करना यहां अप्रासंगिक ही होगा।
१५.२ उत्तराध्ययनसूत्र का आर्थिक दृष्टिकोण
उत्तराध्ययनसूत्र में अर्थ शब्द का प्रयोग अनेक सन्दर्भो में किया गया है, और अलग-अलग सन्दर्भो में उसका अर्थ भी भिन्न-भिन्न है। उसके कुछ अर्थ निम्न हैं – तात्पर्य, प्रयोजन, सम्पत्ति, पदार्थ, ऐन्द्रिक विषय आदि।
उत्तराध्ययनसूत्र में अनेक स्थलों पर अर्थ शब्द का प्रयोग शब्द या कथन के तात्पर्य के अर्थ में किया गया है, जैसे 'सुत्तअत्थं चयं तदुभय', 'महत्थरूवावयणप्पभूया' आदि। इसके अतिरिक्त इसमें अनेक संदर्भो में अर्थ शब्द व्यक्ति के प्रयोजन, उद्देश्य या लक्ष्य के सम्बन्ध में भी प्रयुक्त हुआ है। इसी प्रकार इसमें अर्थ शब्द का प्रयोग सम्पत्ति, वस्तु (पदार्थ) तथा ऐन्द्रिक विषयों के लिए भी हुआ है किन्तु सम्पत्ति, वस्तु तथा ऐन्द्रिक विषयों के लिए प्रयुक्त अर्थ शब्द, वस्तुतः सम्पत्ति परिग्रह या धन का ही वाचक है।
४ प्रश्नव्याकरण-१/५
- (अंगसुत्ताणि, लाडनूं, खंड ३, पृष्ठ ६८०) ५ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति - ३/७७
- (उवंगसुत्ताणि, लाडनूं, खंड २, पृष्ठ ४२६) ६ आदिपुराण - १६/११९
- उद्धत् - प्राचीन जैन साहित्य में आर्थिक जीवन, पृष्ठ है। ७ नंदीसूत्र - सूत्र ३८, गाथा ६
- (नवसुत्ताणि, लाडनूं, पृष्ठ २५६)। ८ उत्तराध्ययनसूत्र - १/२३; १२/३३, १३/१०, १२; १६/८, ६; १८/१३,३४, २१/१, १६; २३/३२, ८८, २४/८,२६, २६/२१; ३०/११;
३२/१,३,४, १००, १०७। उत्तराध्ययनसूत्र-१/२३, १३/१२ । १० उत्तराध्ययनसूत्र -६/८, ११, १३, २०/८
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